Atmadharma magazine - Ank 332
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९७ आत्मधर्म : १५ :
सम्यग्द्रर्शना आठ अंगनी कथा
समकितसहित आचार ही संसारमें ईक सार है,
जिनने किया आचरण उनको नमन सोसो वार है;
उनके गुणोके कथनसे गुणग्रहण करना चाहिए,
अरू पापियोंका हाल सुनके पाप तजना चाहिए.
(३) निर्विचिकित्सा – अंगमां प्रसिद्ध उदायन राजानी कथा
[प्रथम निःशंकअंगमां प्रसिद्ध अंजनचोरनी कथा अने बीजी
निःकांक्षअंगमां प्रसिद्ध सती अनंतमतिनी कथा आपे वांची; त्रीजी कथा आप अहीं
वांचशो.]
सौधर्म – स्वर्गमां देवसभा भराणी छे, अने ईन्द्रमहाराज देवोने सम्यग्द्रर्शननो
महिमा समजावी रह्या छे: अहो देवो! सम्यग्द्रर्शनमां आत्मानुं कोई अनेरुं सुख छे. ए
सुख पासे स्वर्गना वैभवनी कांई ज गणतरी नथी. आ स्वर्गलोकमां साधुदशा नथी
थई शकती, परंतु सम्यग्द्रर्शननी आराधना तो अहीं पण थई शके छे.
मनुष्यो तो सम्यकत्वनी आराधना उपरांत चारित्रदशा पण प्रगट करीने मोक्ष
पामी शके छे. खरेखर, जे जीवो निःशंक्ता, निःकांक्षा, निर्विचिकित्सा वगेरे आठअंग
सहित शुद्ध सम्यग्दर्शनना धारक छे तेओ धन्य छे. एवा सम्यग्द्रष्टि जीवोनी आपणे
अहीं स्वर्गमां पण प्रशंसा करीए छीए.
अत्यारे कच्छ देशमां उदायन राजा आवा सम्यकत्वथी शोभी रह्या छे, ने
सम्यकत्वना आठ अंगोनुं पालन करी रह्या छे; तेमां पण निर्विचिकित्साअंगना
पालनमां तेओ घणा द्रढ छे. मुनिवरोनी सेवामां तेओ एवा तत्पर छे के गमे तेवा
रोगादि होय तो पण तेओ जराय जुगुप्सा करता नथी, ने दुर्गंछा वगर परमभक्तिथी
धर्मात्माओनी सेवा करे छे. धन्य छे एने! तेओ चरमशरीरी छे.