Atmadharma magazine - Ank 332
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९७ आत्मधर्म : १७ :
अने तेणे कह्युं: हे देव! आ मनुष्य शरीर तो स्वभावथी ज मलिन छे, ने रोगादिनुं
घर छे; ते अचेतन शरीर मेलुं होय तेथी आत्माने शुं? धर्मीनो आत्मा तो
सम्यक्त्वादि पवित्र गुणोथी ज शोभे छे. शरीरनी मलिनता देखीने धर्मात्माना गुण
प्रत्ये जे अणगमो करे छे तेने आत्मानी द्रष्टि नथी पण देहनी ज द्रष्टि छे. अरे,
चामडाना शरीरथी ढंकायेला आत्मा अंदर सम्यग्द्रर्शनना प्रभावथी शोभी रह्यो छे,
ते प्रशंसनीय छे.
उदायन राजानी आवी सरस वात सांभळीने ते देव घणो प्रसन्न थयो, अने
तेमने अनेक विद्याओ आपी, वस्त्राभूषण आप्यां; – पण उदायन राजाने क्यां तेनी
वांछा हती? तेओ तो बधो परिग्रह छोडीने वर्द्धमान भगवानना समवसरणमां गया,
अने दीक्षा लई मुनि थई केवळज्ञान प्रगटावी मोक्ष पाम्या. सम्यग्नर्शनना प्रतापे तेओ
सिद्ध थया, तेमने नमस्कार हो.
[आ नानी कथा आपणने एवो मोटो बोध आपे छे के – धर्मात्माना
शरीरादिने अशुची देखीने पण तेना धर्म–प्रत्ये ग्लानि न करो, तेना
सम्यक्त्वादि पवित्र गुणोनुं बहुमान करो.
]
अष्टप्राभृतनी पूर्णता प्रसंगे
अमारो आत्मा ज्ञान–द्रर्शन– चेतनास्वरूप छे; आवो
स्वभाव ते अमारुं शील छे. अंतरना आवा स्वभावनी भावनाथी
शीलरूप थईने जेओ मोक्ष पाम्या तेमने नमस्कार हो.
पंचपरमेष्ठी भगवंतो शीलस्वरूप छे; ब्रह्मरूप आत्मानो
चेतन स्वभाव, तेनी आराधनारूप शील छे, ते मोक्षनुं कारण छे.
आत्मा तरफ वळेलुं ज्ञान ते परविषयोथी विरक्त छे, तेथी ते
ब्रह्मरूप छे – शीलरूप छे. आवा शीलस्वरूप पंचपरमेष्ठी भगवंतो
उत्तम अने मंगलरूप छे. तेमनुं हुं शरण लउं छुं – जेथी जन्म–
मरणनो अंत थईने मने जिनपदनी प्राप्ति थाय.