Atmadharma magazine - Ank 332
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 21 of 56

background image
: जेठ : २४९७ आत्मधर्म : १९ :
काढीए छीए, ते द्वारा आपणे आपणा भगवाननुं बहुमान करीए छीए,
धर्मनो हर्षोल्लास प्रगट करीए छीए, अने बीजा जीवोमां पण ते देखीने धर्मनो
महिमा प्रसिद्ध थाय छे तथा प्रभावना थाय छे. वळी रथयात्रामां चालती वखते
जाणे के भगवानना समवसरणनी साथे आपणे विहार करता होईए – एवा
भाव जागे छे. आपणो जे उत्सव होय ते रथयात्रा द्वारा समाजमां प्रसिद्ध थाय
छे. रथयात्रा निमित्ते साधर्मीओनुं परस्पर मिलन थाय छे.
६६ प्रश्न :– चौद गुणस्थानक शुं छे?
उत्तर :– मोह अने योगना निमित्ते आत्माना श्रद्धा – चारित्र वगेरे गुणोनी
अवस्थानां जे स्थानो छे तेने गुणस्थान कहेवाय छे. आम तो तेना असंख्य
प्रकार छे, पण सिद्धांतमां १४ प्रकार पाडीने तेनुं स्वरूप समजाव्युं छे. आ
संबंधी विशेष विवेचन कोईवार आपीशुं.
६७ प्रश्न :– मोक्षसुख माटे शुं करवुं जोईए?
उत्तर :– मोक्षसुखनो भंडार जेमां भरेलो छे एवा पोताना आत्माने जाणीने
तेमां लीनता करतां मोक्षसुख थाय छे. (जे सुख पोतामां छे – ते अनुभवाय
छे; सुख बीजेथी आवतुं नथी. माटे पहेलांं नक्क्ी करवुं के ‘हुं सुखी छुं’ आत्मा
जेम ज्ञानस्वरूप छे, तेम सुखस्वरूप पण छे.)
६८ प्रश्न :– शुद्ध ज्ञानस्वभावी आत्मा पोते विकारनुं कारण छे?
उत्तर :– ना.
६९ प्रश्न :– आत्माथी भिन्न एवुं परद्रव्य आत्माने विकारनुं कारण छे?
उत्तर :– ना.
७० प्रश्न :– नथी तो आत्मा विकारनुं कारण, नथी परद्रव्य विकारनुं कारण, तो
रागादि विकारनुं कारण छे कोण?
उत्तर :– ज्ञानस्वभावी आत्मा पोताना स्वभावनो संग छोडीने, बाह्य–वलण
वडे परद्रव्यनो संग करे छे, आ परसंगनो जे विकारी भाव छे ज विकारनुं
कारण छे. जीव जो परसंग न करे ने पोताना ज्ञानस्वभावमां ज स्थिर रहे तो
तेने रागादि विकार थतो नथी. माटे स्व–परना भेदज्ञान वडे राग स्वभाव
साधी लेवो, तेमां शुद्धचेतना प्रगटे छे, तथा वचनातीत सुखशांति अनुभवाय
छे. आवा