: २० : आत्मधर्म : जेठ : २४९७
अनुभव वडे विकारनी उत्पत्ति अटकी जाय छे.
७१ प्रश्न :– धर्मीनुं जीवन केवुं छे?
उत्तर :– राग करवानो चेतनानो स्वभाव छे ज नहीं. राग वगर ज आत्मा
जीवे छे. आत्मा पोतानी चेतनाथी जीवे छे, चेतनाथी ज तेनुं अस्तित्व छे, तेने
माटे रागनी जरूर नथी. रागवडे आत्मानुं जीवन मानवुं ते तो आत्माने हणवा
जेवुं छे, तेमां महान दुःख छे. शरीर विना हुं टकीश ने राग विना पण हुं टकीश,
ते बंनेथी रहित आनंदमय चेतनाथी आत्मा स्वयं जीवन जीवे छे. – आवा
पोताना जीवनने धर्मी जाणे छे.
७२ प्रश्न :– ज्ञानी शुं करे छे? अज्ञानी शुं करे छे?
उत्तर :– ज्ञानी शुद्धचेतनरूप पोताना वस्तुस्वभावने जाणे छे; आवा पोताना
वस्तु स्वभावमां रहेलो ज्ञानी रागादिनो कर्ता थतो नथी, पण चेतनारूप ज रहे
छे; चेतन स्वभावमां रागादिक छे ज नहीं. जे जीव पोताना शुद्ध वस्तुस्वभावने
नथी जाणतो अने रागादिक परभावरूपे पोताने अनुभवे छे तथा परद्रव्यनी
ममतारूपे परिणमे छे ते अज्ञानी जीव रागादि भावोनो कर्ता थाय छे.
७३ प्रश्न :– मुक्तिनो उपाय शुं? संसारनुं कारण शुं?
उत्तर :– ज्ञानस्वभाव अने रागनुं भेदज्ञान ते ज मुक्तिनो उपाय छे; अने
ज्ञान साथे रागनी भेळसेळरूप अज्ञान ते ज संसारनुं कारण छे.
७४ प्रश्न :– परद्रव्य जीव विकार करावे – एम माननारो जीव केवो छे?
उत्तर :– मूरखो छे. पोताना स्वभावने रागादिथी जुदो अनुभवीने स्वयं
ज्ञानरूप थयेल ज्ञानीने, जगतनो कोई पदार्थ रागादि करावी शकतो नथी.
परद्रव्य जीवने रागादि करावे एम जे माने छे तेने शास्त्रकारोए मूरख कह्यो छे
(कोई मूरख यों कहे – रागादिक परिणाम, उदयकी जोरावरी वरते आतमराम.
– समयसार नाटक)
७प प्रश्न :– विकारनो कर्ता कोण ? रागादि विकारनो कर्ता जीव मानो तो मिथ्यात्व
थाय छे? अने विकारनो कर्ता जडकर्मने मानो तो तेमां पण मिथ्यात्व थाय छे?
एटले विकारनो कर्ता जडकर्मने मानो तो तेमां पण मिथ्यात्व थाय छे? एटले
विकारनो कर्ता जीव कहेशो तोपण तमने दोष आवशे, ने विकारनो कर्ता कर्म
कहेशो तोपण दोष आवशे?
उत्तर :– भाई! जरा शांत थईने आ वात समजवा जेवी छे. प्रथम, विकार ते