Atmadharma magazine - Ank 332
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९७ आत्मधर्म : ३३ :
‘नाटक सुनत हिये फाटक खुलत है’
[अनुसंधान पाना ८ थी चालु]
* – आवो अनुभव अत्यार थाय?
– तो कहे छे के हा; अत्यारे पण, गृहस्थने पण शुद्धात्मानो अनुभव थई शके छे
अरे, अनुभव शुं चीज छे! ते समजे नहीं, तेनो महिमा जाणे नहीं ते अनुभव
क्यारे करे? अने अनुभव वगर मोक्षमार्गनां द्वार खुलशे क््यांथी!
अनुभवप्रकाशमां तो कहे छे के तिर्यंचोने, नारकीने अने गृहस्थोने पण
आत्मानो निर्विकल्प – अनुभव कोईकोईवार थाय छे.
* धर्मनां उत्तम फळ पाकवा माटे अनुभव ते महान उपजाउ भूमि छे. जेम उत्तम
रसाळभूमिमां उत्तम अनाज पाके तेम स्वानुभव एवी उत्तम भूमि छे के तेमां
सम्यग्दर्शन पाके, सम्यग्ज्ञान पाके, सम्यक्चारित्र पाके, परम आनंद पाके ने
मोक्ष पाके. धर्मनो उत्तम पाक पाकवा माटे अनुभव ते उत्तम रसाळ भूमि छे.
* आत्मा तो अतीन्द्रिय आनंदनुं दूझाणुं छे, जे चोवीस कलाक ने सादिअनंत काळ
सुधी आनंदनां दूध आप्या ज करे. एनी अंदर एकाग्र थतां ज तेमांथी तत्क्षण
अतीन्द्रियआनंद दूझे छे.
* जुओ, आ कवि! साचा कवि तो आवा होय के जे आत्माना गुणनां गाणां
गाय. पण आत्माने जाण्यो होय तो तेनां गाणां गायने! वाह! आत्मानां
अद्भुत गाणां गाया छे. चैतन्यनो ऊंचामां ऊंचो अध्यात्मरस आ
समयसारमां घोळ्‌यो छे.
* जेम ‘पंचोलामां’ वरराजा साथे बेसनारने ऊंचा जमण मळे छे तेम अहीं
पंचपरमेष्ठी भगवानना पंचोलामां बेसीने साधक धर्मात्माओ अतीन्द्रि
आनंदना ऊंचामां ऊंचा भोजन जमे छे. जेमां परम आनंदरस टपके छे एवा
अनुभव वडे साधक जीव पंचपरमेष्ठी साथे बेसीने सुखनां भोजन जमे छे.
* आत्मानो अनुभव थतां कर्म तूटी जाय छे, कर्मचेतना छूटीने परम पद साथे
प्रीति बंधाय छे. आत्मानो जे परमस्वभाव, अने तेनुं परमात्म पद, तेनी साथे
प्रीति अनुभववडे जोडाय छे. आवा अनुभव समान बीजो कोई धर्म नथी.
आवा अनुभवधर्मथी साधकपणुं जयवंत छे. स्वानुभव–धर्म वगर साधकपणुं
होतुं नथी.