: ३४ : आत्मधर्म : जेठ : २४९७
* लोको कहे छे ‘प्रेम धर्मनी जय.’ अहीं तो कहे छे के ‘अनुभवधर्मनो जय हो.’
परनो प्रेम एटले राग, ते तो संसारनुं कारण छे, तेनो तो क्षय करवा जेवो छे.
अरे जीव! आत्मानो जे परम स्वभाव तेने तो प्रेम न कर्यो ने परभावनो प्रेम
करीने तेमां सुख मान्युं ए तो मूर्खता छे. बापु! तारा हित माटे परभावनी
प्रीति छोडीने आत्मामां प्रीति जोड, ने तेनो अनुभव कर. केमके आत्मानो
अनुभव ते ज मोक्षनुं कारण छे, तेथी वीतराग मार्गमां ते ज जयवंत छे. आवो
आत्मअनुभव करवो ते ज वीतरागी शास्त्रोनुं तात्पर्य छे.
* –आवा महिमावंत आत्माना अनुभव सिवाय बीजा कोई व्यवहारने – रागने
महिमा आपतां आत्मानुं अपमान थाय छे – एनी अज्ञानीने खबर नथी.
बापु! बीजानो महिमा छोडीने परम महिमावंत एवा तारा आत्माने जाण.
* दरेक द्रव्य पोताना अनंत पर्यायो सहित छे; चेतनस्वरूप जीव द्रव्य पण
पोताना अनंत गुणो ने अनंत पर्यायो सहित छे. – आवो आत्मा छे ते
जैनशासनमां सर्वज्ञभगवाने ज जोयो छे, संतोए ते अनुभवीने आगमोमां
कह्यो छे. आवा जीव द्रव्यने ओळखीने अंतरमां रागना विकल्प रहित तेनो
अनुभव करवो ते धर्म छे. (चालु)
विश्वनुं महान जादु
सौराष्ट्र विश्वप्रसिद्ध जादुगर के० लाल (– के जेओ जैन संस्कार धरावे छे,
तेओ) वैशाख मासमां राजकोट मुकामे पू. गुरुदेव श्री कानजीस्वामी पासे दर्शन
करवा आवेला, अने चैतन्य–चमत्कारनी वात सांभळीने कह्युं के – महाराज!
अमारी जादुगरी ए तो बधुं धतींग छे, ए तो बधी चालाकी छे; खरो चमत्कार
तो आत्मानो छे – जे आप बतावो छो. बाकी बीजा घणा पण जादुना नामे
धतींग चलावी रह्या छे.
खरेखर, आत्मानो चैतन्य – चमत्कार कोई अद्भुत छे. एक नानकडा
क्षेत्रमां आखा जगतनुं ज्ञान समाई जाय, जेनी सामे जोतां आखुं विश्व देखाई
जाय, अने अनंत आनंदना खजाना जेमां भर्या छे – एवुं चैतन्यतत्त्व जगतमां
अद्भुत आश्चर्यकारी छे. जेणे आवा चैतन्य चमत्कारने जाण्यो तेने जगतनो
कोई चमत्कार आश्चर्य उपजावतो नथी.
आ रीते आत्मतत्त्व ए ज विश्वनुं सौथी महान जादु छे; ए
जादुने कोई विरला ज जाणे छे.