राजकोट शहेरना भावभीना प्रवचनमां
गुरुदेव कहे छे के –
ज्ञानस्वरूप भगवान आत्मामां
अनंती शक्ति छे; तेनी सन्मुख थतां अतीन्द्रि
आनंदनो अनुभव थाय छे. आवी दशा प्रगटे
तेनुं नाम धर्म छे.
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आत्मानी शक्तिनुं कार्य निर्मळ छे; ते
रागथी पार छे. निर्मळ गुण–पर्यायनो पिंड
आत्मा छे; एनी अंदर द्रष्टि करतां आंखो
आत्मा निर्विकल्प अनुभवमां आवे छे.
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एने तुं लक्षमां तो ले. अरे, आवा परम
सत्य स्वभावनी वात सांभळवा महा
भाग्यथी मळे छे.. . अने ते समजे एनी तो
शी वात?
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शुद्धद्रष्टिवाळा आसन्न भव्य जीवने
पोताना अंतरमां शुद्ध कारण परमात्मा ज
उपादेय छे; तेमां सहज सुखनो सागर ऊछळे
छे. आवा उत्तम सारभूत स्वतत्त्वमां तारी
बुद्धिने जोड.