Atmadharma magazine - Ank 332
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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भाई, आनंदनुं धाम एवो तारो
आत्मा छे. रागथी पार ध्रुव चिदानंद
स्वभाव छे, ते सत् छे, तेने द्रष्टिमां ले.
अंतरमां सत् स्वभाव ‘छे’ तेनी आ
वात छे.
बापु! आत्मानुं कल्याण करवानी आ
मोसम छे. जेम मोसम आवतां फळफूलथी
वृक्षो खीली ऊठे छे, स्वातिनां बिंदुथी मोती
पाके छे, तेम चैतन्यमां सम्यग्दर्शनादि रत्नो
पाकवानी आ मोसम छे.
रागरहित पवित्र पर्यायो जेमांथी
प्रगटे एवी चैतन्यखाण तो आत्मा छे. एनी
सन्मुख थतां, चैतन्यना ऊंडा पाताळमांथी
श्रद्धा–ज्ञान–आनंदनी निर्मळ पर्यायो प्रगटे
छे.
प्रभो! तारी शक्तिओ घणी गंभीर
छे, एने बीजा कोईनी अपेक्षा नथी. अनंत
शक्तिवाळा आत्मानो अनुभव थयो ते
निर्विकल्प शुद्धप्रमाण छे; तेमां राग नथी.