भाई, आनंदनुं धाम एवो तारो
आत्मा छे. रागथी पार ध्रुव चिदानंद
स्वभाव छे, ते सत् छे, तेने द्रष्टिमां ले.
अंतरमां सत् स्वभाव ‘छे’ तेनी आ
वात छे.
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बापु! आत्मानुं कल्याण करवानी आ
मोसम छे. जेम मोसम आवतां फळफूलथी
वृक्षो खीली ऊठे छे, स्वातिनां बिंदुथी मोती
पाके छे, तेम चैतन्यमां सम्यग्दर्शनादि रत्नो
पाकवानी आ मोसम छे.
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रागरहित पवित्र पर्यायो जेमांथी
प्रगटे एवी चैतन्यखाण तो आत्मा छे. एनी
सन्मुख थतां, चैतन्यना ऊंडा पाताळमांथी
श्रद्धा–ज्ञान–आनंदनी निर्मळ पर्यायो प्रगटे
छे.
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प्रभो! तारी शक्तिओ घणी गंभीर
छे, एने बीजा कोईनी अपेक्षा नथी. अनंत
शक्तिवाळा आत्मानो अनुभव थयो ते
निर्विकल्प शुद्धप्रमाण छे; तेमां राग नथी.
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