Atmadharma magazine - Ank 332
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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‘समजाय छे कांई?’ – आत्मानी
समजण ए ज साचो विसामो छे, बाकी तो
बधुं थोथा छे.
आ तो भगवाननी “ ध्वनिमांथी
आवेली वात छे. संतोए आनंदना खजाना
खोली दीधा छे. आ तो धर्मनी कमाणीनो
अवसर छे.
चैतन्यना स्वभावनी ताकात एवी छे
के रागना आलंबन वगर एक समयमां
त्रणकाळ त्रणलोकने जाणी ल्ये. आवा
चैतन्यप्राणथी त्रिकाळ जीवनारो आत्मा छे.
परनी सन्मुख जोये धर्म थाय–एवुं
स्वरूप नथी; अंतरमां तारा स्वभावनी
सन्मुख थतां आत्मा पोते पोतानी
निर्मळपर्यायने करे छे. अतीन्द्रिय आनंदनो
नाथ पोते अंदर बिराजे छे.
अहो, सर्वज्ञना आ मारगडा... ए
जगतथी जुदा छे. अंतरमां सर्वज्ञ स्वभावनी
सन्मुख थतां आनंदना अनुभव सहित
मोक्षमार्ग अंदरथी ज प्रगटे छे भगवान!
अंतरमां नजर तो कर.