‘समजाय छे कांई?’ – आत्मानी
समजण ए ज साचो विसामो छे, बाकी तो
बधुं थोथा छे.
आ तो भगवाननी “ ध्वनिमांथी
आवेली वात छे. संतोए आनंदना खजाना
खोली दीधा छे. आ तो धर्मनी कमाणीनो
अवसर छे.
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चैतन्यना स्वभावनी ताकात एवी छे
के रागना आलंबन वगर एक समयमां
त्रणकाळ त्रणलोकने जाणी ल्ये. आवा
चैतन्यप्राणथी त्रिकाळ जीवनारो आत्मा छे.
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परनी सन्मुख जोये धर्म थाय–एवुं
स्वरूप नथी; अंतरमां तारा स्वभावनी
सन्मुख थतां आत्मा पोते पोतानी
निर्मळपर्यायने करे छे. अतीन्द्रिय आनंदनो
नाथ पोते अंदर बिराजे छे.
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अहो, सर्वज्ञना आ मारगडा... ए
जगतथी जुदा छे. अंतरमां सर्वज्ञ स्वभावनी
सन्मुख थतां आनंदना अनुभव सहित
मोक्षमार्ग अंदरथी ज प्रगटे छे भगवान!
अंतरमां नजर तो कर.
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