Atmadharma magazine - Ank 332
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: जेठ : २४९७ आत्मधर्म : ३ :
* तारुं जीवन आ शरीर – मन –ईन्द्रियो के आयुवडे नथी; आयुष्य ते तो
शरीरना संयोगनी स्थितिनुं कारण छे, एना वडे कांई जीव नथी टकतो, जीव तो
पोताना चैतन्यजीवन वडे जीवे छे. आयु ते जीवनुं नथी. आयु खूटतां जीव मरी
जतो नथी, ते तो चैतन्यप्राणवडे जीवतो छे.
* अरिहंत भगवंतो अने सिद्धभगवंतो आवुं चैतन्यजीवन जीवे छे, ते ज साचुं
जीवन छे –
तारुं जीवन खरुं तारुं जीवन....
जीवी जाण्युं नेमनाथे जीवन....
जीवी रह्या छे साचुं आत्मजीवन....
* नेमनाथनी जेम आपणो आत्मा पण चैतन्यजीवने जीवनारो छे; पोताना
जीवन माटे, पोताना अस्तित्व माटे कोई बीजानी जरूर तेने पडती नथी.
* जीवने जीवत्वनुं कारण पोताना चैतन्यमात्र भावप्राण छे, अने ते भावप्राणने
धारण करवानुं कारण जीवत्वशक्ति छे. आत्मा पोतानी जीवत्वशक्तिथी
चैतन्यमात्र भावप्राणने धारण करीने सदाय जीवंत छे. आत्मा पोते
‘जीवंतस्वामी’ छे.
* सीमंधरपरमात्माने विदेहक्षेत्रना जीवंतस्वामी कहेवाय छे; जीवंत एटले
विद्यमान. तेम जीवनशक्तिनो स्वामी एवो जीवंतस्वामी आत्मा पोताना
चैतन्यप्राणवडे सदा विद्यमान छे.
* जेम सरोवर छोडीने मृगलां झांझवां पाछळ दोडीदोडीने हांफे तोपण तेने पाणी
मळतुं नथी, – क््यांथी मळे? त्यां पाणी छे ज क््यां? तेम अनंतशक्तिना जळथी
भरेलुं निर्मळ चैतन्य सरोवर, – जे पोते ज छे, तेने भूलीने झांझवा जेवा
रागमां जीव दोडे छे, ने तेनी पाछळ दोडी दोडीने दुःखी थाय छे, सुखनो छांटोय
एने मळतो नथी, – क््यांथी मळे? रागमां सुख छे ज क््यां? बापु! सुखनुं
सरोवर तो तारामां छलोछल भर्युं छे, तेमां जो.... तो तारा आत्मसरोवरमांथी
तने सुखनां अमृत मळशे.... ने तारी तृषा छीपशे.
* आत्मा अने रागादिभावो, तेना स्वादमां मोटो फेर छे. पण ते बंनेना स्वादने
जुदो पाडवारूप भेदसंवेदनशक्ति अज्ञानीओने बिडाई गई छे, ने ज्ञानीने शुद्ध–