Atmadharma magazine - Ank 333
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 20 of 44

background image
: १८ : आत्मधर्म : अषाढ : र४९७
जुओ, अंतरनी अध्यात्मद्रष्टिथी जीवना स्वरूपनी आ अलौकिक व्याख्या छे.
श्रीमद्ने अंतरनी अध्यात्मद्रष्टि हती, तेथी अंदरना सूक्ष्म अध्यात्मभावो खोलीने
अर्थ लख्या छे. जाणनारो एवो जीव पोते न होय तो पदार्थोने जाणे कोण? ‘आ
शरीर – मकान बधाने हुं जाणुं छुं, – पण मारो आत्मा छे के नहीं – तेनी मने खबर
नथी’ – एम जीव पोताना अस्तित्वने ज भूली रह्यो छे. अरे, पोते ज कहे के हुं मने
देखातो नथी – ए ते केवी मुर्खाई? केवुं अज्ञान?
घट–पट आदि जाण तुं तेथी तेने मान;
पण जाणनारने मान नहीं, – कहिये केवुं ज्ञान?
देह न जाणे देहने, जाणे न ईन्द्रिय प्राण;
आत्मानी सत्ता वडे तेह प्रवर्ते जाण.
बापु! आ बधा पदार्थो छे – ते जणाय छे ने? .... हा; तो कोनी सत्तामां ते
बधुं जणाय छे? जेना अस्तित्वमां बधुं जाणे छे ते तुं ज छो; तुं ज बधाने जाणनारो
ज्ञानस्वरूप छो देहने कांई खबर नथी के ‘हुं देह छुं. ’ ‘आ देह छे, आ ईंद्रियो छे’
एवुं जे जाणे छे ते जाणनारो पोते देहादिरूप थयो नथी, पण देहथी भिन्न रहीने तेने
जाणे छे. आवो जाणनारो पदार्थ ते पोते जीव छे. तेथी ज्ञानी कहे छे के –
‘जाणनारनो जाण्या वगर धर्म थाय नहीं.’
‘जेणे आत्मा जाण्यो ते सर्व जाण्युं.’
–जुओ, आ आत्माना ज्ञानस्वभावनी मुख्यता. मुख्यता एटले ऊर्ध्वता.
‘प्रथम जीव होय तो ज पदार्थो जणाय. ’ – अहीं प्रथम पहेलांं आत्मा हतो ने पछी
ज्ञेयो थया–एवो तेनो अर्थ नथी. पण प्रथम एटले मुख्य, ऊर्ध्व; पोते पोतामां
रहीने बधाने जाणी ल्ये, बधायने जाणवा छतां बधाथी जुदो रहे – अधिक रहे,
रागादिने जाणवा छतां पोते रागरूप न थाय, पोते ज्ञानरूप ज रहे – आवुं
अचिंत्यज्ञानसामर्थ्य जीवमां एकलामां ज छे, तेथी तेनामां ऊर्ध्वता छे. आवा
आत्माने जाणतां जीव ऊर्ध्व एवी सिद्धगतिने पामे छे. आत्मा ज्यारे मोक्ष पामे
त्यारे एक समयमां स्वाभावि ऊर्ध्वगमन करीने ते सिद्धक्षेत्रमां सादिअनंतकाळ सुधी
स्थिर रहे छे ने अनंत आनंद सहित सदाकाळ निजस्वरूपमां बिराजे छे. –
पूर्व प्रयोगादि कारणना योगथी,
ऊध्वर्गगमन सिद्धालय–प्राप्त सुस्थित जो;