: अषाढ : र४९७ आत्मधर्म : १९ :
सादि अनंत अनंत समाधिसुखमां,
अनंत दर्शन ज्ञान अनंत सहित जो.
जगतना कोईपण पदार्थने सिद्ध करतां तेने जाणनारो हुं ज्ञानस्वरूप आत्मा
छुं– एम तो पहेलांं ज नक्क्ी थवुं जोईए. आत्मानुं पोतानुं अस्तित्व नककी कर्यां वगर
कोईपण ज्ञेयोनुं साचुं ज्ञान थई शके नहीं. – माटे सर्वपदार्थोमां आत्मा ऊर्ध्व छे.
जगतमां अनंता सिद्ध भगवंतो छे..... जाण्युं कोणे? .... के आत्माए.
जगतमां पंचपरमेष्ठी छे..... जाण्युं कोणे? .... के आत्माए.
जगतमां जड–चेतन तत्त्वो छे..... जाण्युं कोणे? .... के आत्माए.
जगतमां छ द्रव्यो छे..... जाण्युं कोणे? ... के आत्माए.
जगतमां अंत वगरनुं आकाश छे..... जाण्युं कोणे? ... के आत्माए.
आ रीते बधायने जाणवामां जाणनारनी पहेली मुख्यता छे. अनंता सिद्ध
भगवंतोनुं अस्तित्व छे – ते जाण्युं कोणे? के ज्ञाने; ज्ञानना अस्तित्वमां अनंता
सिद्धोनुं अस्तित्व जणायुं. तो जे ज्ञाने अनंता सिद्धभगवंतोना अस्तित्वनो स्वीकार
कर्यो ते ज्ञाननी ताकात केटली? ते ज्ञान केटलुं मोटुं? – आवा ज्ञानसामर्थ्य वडे
आत्मानी ऊर्ध्वता ने महानता छे. रागमां ए ताकात नथी; रागथी भिन्न ज्ञानमां ज
ए ताकात छे. ते ज्ञान पोते रागथी ऊर्ध्व (– ऊंचुं – जुदुं – अधिक) थईने
ज्ञानस्वभावमां तन्मय परिणम्युं छे. आवा ज्ञानस्वरूप आत्माने जाणतां महान
आनंद थाय छे, ने अंतरना दरवाजा ऊघडी जाय छे.
[नाटक सुनत हिये फाटक खुलत है।]
वळी जीवमां ज्ञायकता अने सुखस्वभाव छे ते बतावे छे:
(ज्ञायकता –) ‘प्रगटे एवा जड पदार्थो अने जीव, तेओ जे कारणे करी भिन्न
पडे छे ते लक्षण जीवनो ‘ज्ञायकपणा’ नामनो गुण छे. कोई पण समये ज्ञायकता
रहितपणे आ जीवपदार्थ कोई पण अनुभवी शके नहीं; अने ते ‘जीव’ नामना
पदार्थ सिवाय बीजा कोई पण पदार्थने विषे ज्ञायकपणुं संभवी शके नहीं; एवुं जे
अत्यंत अनुभवनुं कारण ‘ज्ञायकता’ – ते लक्षण जेनामां छे ते पदार्थने तीर्थंकर
भगवाने ‘जीव’ कह्यो छे.