: अषाढ : र४९७ आत्मधर्म : २१ :
समकितसहित आचार ही संसारमें ईक सार है,
जिनने किया आचरण उनको नमन सोसो वार है;
उनके गुणोंके कथनसे गुणग्रहण करना चाहिये,
अरू पापियोंका हाल सुनके पाप तजना चाहिए.
(४) अमूढद्रष्टि–अंगमां प्रसिद्ध रेवतीराणीनी कथा
(प्रथम निःशंकअंगमां प्रसिद्ध अंजनचोरनी कथा, बीजी निःकांक्षअंगमां
प्रसिद्ध सती अनंतमतिनी कथा, तथा त्रीजी निर्विचिकित्सा – अंगमां प्रसिद्ध उदायन
राजानी कथा आपे वांची; चोथी कथा आप अहीं वांचशो.)
आ भरतक्षेत्रनी वच्चे विजयार्द्ध – पर्वत आवेलो छे, तेना पर विद्याधर
मनुष्यो रहे छे; ते विद्याधरोना राजा चंद्रप्रभुनुं चित्त संसारथी विरक्त हतुं;
राजयकारभार पोताना पुत्रने सोंपीने ते तीर्थयात्रा करवा नीकळ्या हता. तेओ
केटलोक वखत दक्षिण मथुरामां रह्या; दक्षिणदेशना प्रसिद्ध तीर्थो, अने रत्नोनां
जिनबिंबथी शोभता जिनालयो देखीने तेमने आनंद थयो. मथुरामां ते वखते
गुप्ताचार्य नामना महान मुनिराज बिराजता हता, तेओ विशिष्ट ज्ञानना धारक
हता अने मोक्षमार्गनो उत्तम उपदेश देता हता, चंद्रराजाए केटलाक दिवस सुधी
मुनिराजनो उपदेश सांभळ्यो अने भक्तिपूर्वक तेमनी सेवा करी.
त्यार पछी उत्तर मथुरानगरीनी यात्राए जवानो विचार कर्यो –के ज्यांथी
जंबुस्वामी मोक्ष पाम्या छे अने ज्यां अनेक मुनिराज बिराजता हता, तेमां
भव्यसेन नामना एक मुनि पण प्रसिद्ध हता. ते वखते मथुरामां वरुणराजा हता
अने तेमनी राणीनुं नाम रेवतीदेवी हतुं.
चंद्रराजाए मथुरा जवानी पोतानी ईच्छा गुप्ताचार्य पासे रजु करी अने
आज्ञा मांगी, तथा त्यांना संघ माटे कांई संदेश लई जवानुं पूछयुं.