Atmadharma magazine - Ank 333
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ : र४९७ आत्मधर्म : २३ :
प्रसन्नचित्तथी भावपूर्वक फरीफरीने ए मुनिराजने नमस्कार करीने राजा
विदाय थयो अने भव्यसेन मुनिराज पासे आव्यो... तेमणे घणुं शास्त्रज्ञान हतुं ने
लोकोमां तेओ खूब प्रसिद्ध हता. राजा तेमनी साथे केटलोक वखत रह्या, पण ते
मुनिराजे न तो आचार्यसंघना कांई कुशल–समाचार पूछया के न कोई उत्तम
धर्मचर्चा करी मुनिने योग्य व्यवहारआचार पण तेमना सरखा न हता; शास्त्रो
भणवा छतां शास्त्रानुसार तेमनुं आचरण न हतुं. मुनिने न करवा योग्य प्रवृत्ति
तेओ करता हता. आ बधुं नजरे देखीने राजाने ख्याल आवी गयो के ते भव्यसेन
मुनि गमे तेटला प्रसिद्ध होय पण ते साचा मुनि नथी. – तो पछी गुप्तआचार्य
तेमने केम याद करे? खरेखर, ए विचक्षण आचार्यभगवाने योग्य ज कर्युं छे.
आ रीते सुरतिमुनिराज अने भव्यसेनमुनिने तो नजरे देखीने परीक्षा करी;
हवे रेवती राणीने आचार्य महाराजे धर्मवृद्धिना आशीष कह्या छे तेथी तेनी पण
परीक्षा करुं – एम राजाने विचार थयो.
* * *
बीजे दिवसे मथुरा नगरीना उद्यानमां एकाएक साक्षात् ब्रह्मा पधार्या.
नगरजनोना टोळेटोळां एनां दर्शन माटे उमटया... ने गाम आखामां चर्चा चाली के
अहा! सृष्टिना सरजनहार ब्रह्माजी साक्षात् पधार्या छे... तेओ कहे छे के हुं आ
सृष्टिनो सर्जनहार छुं ने दर्शन देवा आव्यो छुं.
मूढ लोकोनुं तो शुं कहेवुं? मोटा भागना लोको ए ब्रह्माजीना दर्शन करी
आव्या. पेला प्रसिद्ध भव्यसेन मुनि पण कुतूहलवश त्यां जई आव्या न गया एक
सुरत – मुनि, अने न गई रेवतीराणी.
ज्यारे राजाए साक्षात् ब्रह्मानी वात करी त्यारे महाराणी रेवतीए
निःशंकपणे कह्युं – महाराज! ए ब्रह्मा होई शके नहीं; कोईक मायाचारीए ईन्द्रजाळ
ऊभी करी छे, केमके कोई ब्रह्मा आ सृष्टिना सरजनहार छे ज नहीं. ब्रह्मा तो
आपणो ज्ञानस्वरूप आत्मा छे; अथवा भरतक्षेत्रमां भगवान ऋषभदेवे
मोक्षमार्गनी रचना करी तेथी तेओने ब्रह्मा कहेवाय छे. – ए सिवाय बीजो कोई
ब्रह्मा नथी – के जेने हुं वंदन करुं.
बीजो दिवस थयो अने मथुरानगरीना बीजा दरवाजे नागशय्यासहित
साक्षात् विष्णुभगवान पधार्या, जेने अनेक शणगार हता ने चार हाथमां शस्त्रो
हतां. लोकोमां