Atmadharma magazine - Ank 333
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: २४ : आत्मधर्म : अषाढ : र४९७
तो फरी पाछी हलचल मची गई; लोको वगरविचार्ये दोड्या, ने कहेवा लाग्या के
अहा! मथुरानगरीना महाभाग्य खील्या छे के गईकाले साक्षात् ब्रह्माए दर्शन दीधा
ने आजे विष्णुभगवान पधार्या.
राजाने एम थयुं के आजे तो जरूर राणी आवशे, एटले तेणे होंशथी राणीने
ते वात करी. – पण रेवती जेनुं नाम! वीतरागदेवना चरणमां ज चोटेलुं एनुं मन
जराय डग्युं नहीं. श्रीकृष्णादि नव विष्णु (एटले के वासुदेव) थाय छे, अने ते तो
नव चोथा काळमां थई चुकया. दशमां विष्णुनारायण कदी थाय नहीं, माटे जरूर आ
बधुं बनावटी ज छे; केमके जिनवाणी कदी मिथ्या होय नहीं. आम जिनवाणीमां
द्रढश्रद्धापूर्वक, अमूढद्रष्टिअंगथी ते जरा पण चलायमान न थई.
त्रीजा दिवसे वळी नवो फणगो फूट्यो. ब्रह्मा अने विष्णु पछी आजे तो
पार्वती देवीसहित जटाधारी शंकर महादेव पधार्या. गामना घणा लोको एना दर्शन
करवा उमटया; कोई भक्तिथी गया तो कोई कुतूहलथी गया. पण जेना रोमेरोममां
वीतरागदेव वसता हता एवी रेवतीराणीनुं तो रूंवाडुंय न फरकयुं, एने कंई आश्चर्य
न थयुं, अने तो लोकोनी दया आवी के अरेरे! परम वीतराग सर्वज्ञदेव मोक्षमार्गने
देखाडनारा भगवान, तेमने भूलीने मूढताथी लोको ईन्द्रजाळमां केवा फसाई रह्या
छे! खरेखर, भगवान अरिहंतदेवनो मार्ग प्राप्त थवो जीवोने बहु दुर्लभ छे.
हवे चोथा दिवसे तो मथुराना आंगणे तीर्थंकर भगवान पधार्या.... अद्भुत
समवसरणनी रचना, गंधकूटी जेवो देखाव अने तेमां चतुर्मखसहित तीर्थंकर
भगवान! लोको तो फरी पाछा दर्शन करवा दोडया. राजाने एम के आ वखते तो
तीर्थंकर भगवान पधार्या छे एटले रेवतीदेवी जरूर आवशे.
पण रेवतीराणीए तो कह्युं के अरे महाराज! अत्यारे आ पंचमकाळमां वळी
तीर्थंकर केवा? भगवाने आ भरतक्षेत्रमां एक चोवीसीमां चोवीस ज तीर्थंकर थवानुं
कह्युं छे, ने ते ऋषभथी मांडीने महावीर सुधी २४ तीर्थंकरो थईने मोक्ष पधारी गया,
आ पच्चीसमा तीर्थंकर केवा? ए तो कोई कपटीनी मायाजाळ छे. मूढलोको देवना
स्वरूपनो विचार पण करता नथी ने एमने एम दोडया जाय छे.
बस, परीक्षा थई चुकी... विद्याधर राजाने खातरी थई गई के आ
रेवतीराणीनी प्रशंसा गुप्ताचार्ये करी छे ते योग्य ज छे, ते सम्यकत्वना सर्वे अंगोथी
शोभी रही छे.