अहा! मथुरानगरीना महाभाग्य खील्या छे के गईकाले साक्षात् ब्रह्माए दर्शन दीधा
ने आजे विष्णुभगवान पधार्या.
जराय डग्युं नहीं. श्रीकृष्णादि नव विष्णु (एटले के वासुदेव) थाय छे, अने ते तो
नव चोथा काळमां थई चुकया. दशमां विष्णुनारायण कदी थाय नहीं, माटे जरूर आ
बधुं बनावटी ज छे; केमके जिनवाणी कदी मिथ्या होय नहीं. आम जिनवाणीमां
द्रढश्रद्धापूर्वक, अमूढद्रष्टिअंगथी ते जरा पण चलायमान न थई.
करवा उमटया; कोई भक्तिथी गया तो कोई कुतूहलथी गया. पण जेना रोमेरोममां
वीतरागदेव वसता हता एवी रेवतीराणीनुं तो रूंवाडुंय न फरकयुं, एने कंई आश्चर्य
न थयुं, अने तो लोकोनी दया आवी के अरेरे! परम वीतराग सर्वज्ञदेव मोक्षमार्गने
देखाडनारा भगवान, तेमने भूलीने मूढताथी लोको ईन्द्रजाळमां केवा फसाई रह्या
छे! खरेखर, भगवान अरिहंतदेवनो मार्ग प्राप्त थवो जीवोने बहु दुर्लभ छे.
भगवान! लोको तो फरी पाछा दर्शन करवा दोडया. राजाने एम के आ वखते तो
तीर्थंकर भगवान पधार्या छे एटले रेवतीदेवी जरूर आवशे.
कह्युं छे, ने ते ऋषभथी मांडीने महावीर सुधी २४ तीर्थंकरो थईने मोक्ष पधारी गया,
आ पच्चीसमा तीर्थंकर केवा? ए तो कोई कपटीनी मायाजाळ छे. मूढलोको देवना
स्वरूपनो विचार पण करता नथी ने एमने एम दोडया जाय छे.
शोभी रही छे.