Atmadharma magazine - Ank 333
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ : र४९७ आत्मधर्म : १ :
वार्षिक वीर सं. र४९७
लवाजम अषाढ
चार रूपिया JULY, 1971
वर्ष : २८ अंक : ९
जयपुरमां में जोयो–साधर्मीओनो सुंदर मेळो
n वीतरागविद्याना प्रचारनो महान उत्सव n
देशोदेशना साधर्मीओना मिलननुं उमंगभर्युं वातावरण

जैननगरी जयपुर एटले भारतदेशनी रमणीयनगरी, राजस्थाननी
राजधानी, जैनविद्वानोनी खाण, पचीस हजार जेटला जैनो अने एनाथी लगभग
दशगणा जिनभगवंतोथी जे शोभे छे, एवी ए जयपुरनगरीमां पूज्य श्री
कानजीस्वामी वीसदिवस पधार्या अने धर्मप्रभावनानो तथा वीतरागी विद्याना
प्रचारनो जे महान उत्सव थयो, तेनो प्रारंभिक सचित्र अहेवाल गतांकमां आपेल,
ते वांचीने जिज्ञासुओ प्रसन्न थया हता. अने त्यारपछीना अहेवाल माटे इंतेजार
हता. ते अहीं आपवामां आवे छे.
(–ब्र. ह. जैन)
०००
अमदावादथी विमानमां गुरुदेव जयपुर पधार्यां; वैशाख वद छठ्ठे जयपुरमां
स्वागत थयुं. टोडरमल – स्मारकभवनमां प्रवचनसार तथा समयसार उपर प्रवचनो
शरू थया. शेठ श्री शांतिप्रसादजी शाहुनी अध्यक्षतामां संमेलन थयुं, जेमां गुरुदेवे