वीतरागविद्याना प्रचार माटे शिक्षणवर्गो चाल्या, ने गामेगामना जिज्ञासुओए
उत्साहथी तेमां भाग लीधो. आ प्रसंगे लाभ लेवा भारतनी चारे दिशामांथी जुदा
जुदा १प२ गामना बे हजार जेटला मुमुक्षु भाई – बहेनो जयपुर आव्या हता.
विद्वान साहित्यकारो–पंडितो, श्रीमंतो – आगेवानो, तेमज अध्यात्मरसिक हजारो
मुमुक्षुओ उल्लासथी भाग लईने बधा कार्यक्रमोने शोभावता हता... जैनधर्मनो
आवो सुंदर प्रभाव अने अध्यात्ममय वातावरण देखीने हृदय प्रसन्नता अनुभवतुं
हतुं..... साधर्मीओने देखी–देखीने हृदयमां आनंद अने वात्सल्य ऊभराता हता.
चर्चा करता; सौ पोतपोतानी रीते साधनामां मस्त हता. कोई सामायिकमां, तो कोई
स्वाध्यायमां, कोई श्रवणमां तो कोई चर्चामां, कोई लेखनमां तो कोई प्रभुसन्मुख
भक्तिपूजनमां प्रवृत्त रहेता. कोई नजीकना जिनेन्द्रधामोनां दर्शन करवा जता, तो
कोई दर्शन कर्यां पछी तेना आनंदकारी वर्णन द्वारा बीजाने पण दर्शन करवानी
प्रेरणा जगाडता हता. चारेकोर बस, धार्मिक वातावरण ज देखातुं हतुं... सौ
जैनधर्मनी साधनामां ज रत हता... चर्चा पण एनी ज! बधायना मनमां एक ज
ध्येय हतुं के आत्मानी मुमुक्षुता पोषाय; आत्माना स्वभावने अनेक पडखेथी
जाणीजाणीने अध्यात्मभावो खीले ने आनंदमय स्वानुभव थाय. कोई दक्षिण
प्रदेशना, तो कोई उत्तरना, कोई पूर्वना तो कोई पश्चिमना, ने कोई मध्यप्रदेशना,
एम चारेकोरथी मुमुक्षु – साधर्मीजनो एकठा थया हता. भिन्नभिन्न देश, भिन्न
भिन्न वेश, भिन्नभिन्न भाषा, छतां सौनुं ध्येय एक ज हतुं.
त्यार पहेलांं अडधी कलाक अध्यात्मिक भजनो चाले; तथा जिनमंदिरमां पूजननी भारे
भीड जामी होय. प्रवचन पछी शिक्षणवर्गोनी जोशदार प्रवृत्ति चाले, बीजा मुमुक्षुओ
स्वाध्याय – मनन करे. भोजननी व्यवस्था पण सादी अने सुंदर हती. बपोरे पण