दिवस अने ज्ञानप्रभावनो उत्सव ए बंनेनो मेळ थई गयो हतो. प्रवचनमां गुरुदेवे
श्रुतपंचमीनो ईतिहास कहीने, धरसेनस्वामी वगेरे दिगंबर जैन मुनिवरोनो तथा
वीतरागी श्रुतज्ञाननो घणो महिमा कर्यो हतो, अने कह्युं हतुं के जिनवाणी महापूज्य
छे. एक तरफ समयसारादि अध्यात्म–श्रुतज्ञान अखंड रह्या छे. –जे आत्मानुं
शुद्धस्वरूप देखाडे छे; बीजी तरफ षट्खंडागम जेवा सिद्धांत –श्रुतज्ञान पण अखंड
रही गया. आत्म निश्चय ने व्यवहार बंने प्रकारनां परमागमद्वारा वीतरागीश्रुतनी
अखंड धारा चाली रही छे. तेना बहुमानपूर्वक अभ्यास करवा जेवो छे. तथा आवा
ज्ञाननो प्रचार करवा जेवो छे. अहा, मुनिओ तो सर्वज्ञ जेवा छे. –एम कहीने
तेमनो घणो ज महिमा कर्यो हतो.
देखीने हृदय ठरतुं हतुं के वाह! जिनवाणीमाता! तारा जयजयकार वर्ती रह्या छे......
हजार बाळको तारा शरणे निजहितने साधी रह्या छे... गुरुकहान द्वारा तारो प्रभाव
भारतभरमां फेलाई रह्यो छे.
संमेलन केवा होय तेनो आ एक आदर्श हतो. ज्यां रोज स्वाध्याय माटे हजारो
शास्त्रो उघडता हता ने अध्यात्मचर्चानो धोध वहेतो हतो.
तेमणे उत्सवने सफळ बनाव्यो. अने शिक्षणवर्गोना आयोजनमां पहेलेथी छेल्ले
सुधी पंडित श्री हुकमीचंदजीए परिश्रम लईने आखा कार्यक्रमने सफळ बनाव्यो.
जयपुर नगरीना नगरजनोए जे उमदा साथ आप्यो ते पण प्रशंसापात्र हतो, अने
उत्सवनी सफळतामां सौथी मुख्य कारण हजारो मुमुक्षुओनो धार्मिक उत्साह हतो.
एक साथे हजारो