Atmadharma magazine - Ank 333
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ : र४९७ आत्मधर्म : ५ :
भाई – बहेनो, बीजुं बधुं भूलीने सवारथी रात सुधी अध्यात्मज्ञानना अभ्यासमां
लागी गया हता. ते देखीने हृदयमांथी एवा उद्गार नीकळता के वाह! धन्य छे मारा
आ बधा साधर्मीओने! –
‘संग साधर्मीनको नित दीजे.... ’
श्रुतपंचमीनी रात्रे पू. बेनश्रीबेने श्रुतभक्ति करावी हती.
जेठ सुद छठ्ठे जयपुरना एक भाव ‘आदर्शनगर’ मां (ज्यां मुख्यपणे
मुलतानथी आवेला साधर्मीओ रहे छे अने अत्यंत मनोहर जिनमंदिर तैयार थई
रह्युं छे – त्यां) बपोरे भक्ति–पूजन तथा प्रवचन थया हता. अहींना जिनमंदिरमां
मूलतान (पाकिस्तान) थी साथे लावेला १०० जेटला जिनभगवंतो बिराजमान छे.
गुरुदेव बपोरे दोढ वागे त्यां पधार्या, अने उमंगभर्युं वातावरण जोयुं. अहा, खरे
बपोरे सामुहिक जिनेन्द्रपूजननुं हर्षमय वातावरण अद्भुत हतुं; त्यां नहोतुं माईक
के न हती चोपडीओ, छतां हजार – हजार गळां एकसाथे एकताने गाजता हता, ने
आनंदोल्लासकारी पूजन चालतुं हतुं. पचीस वर्ष पहेलांं पाकिस्तान ना अति
त्रासथी त्रासीने भारत आवेला ए भक्तो, भगवंतोने पण साथे ज लाव्या हता.
कहे छे के कांई पण सामान साथे लाववानुं ज्यारे मुश्केल हतुं त्यारे पण सेंकडो
जिनप्रतिमाओ चमत्कारिक रीते विमानमां साथे आवी गया. ते प्रसंगना स्मरणथी
जाणे भक्तोनां हृदयो भक्तिथी उछळता हता. अद्भुत हतुं ए पूजन– भक्तिनुं
द्रश्य! नाना ने मोटा, भाईओ ने बहेनो – एम हजार जेटला जिनभक्तो अत्यंत
भावथी ए पूजनमहोत्सवमां भाग लेता हता. कहानगुरु पण पूजनमां बेठा हता.
पूजन बाद त्यां ज गुरुदेवनुं प्रवचन थयुं हतुं. नगरना हजारो श्रोताओए
उत्साहपूर्वक प्रवचनमां भाग लीधो हतो; प्रवचनमां समयसारनी ११मी गाथा द्वारा
सम्यग्दर्शननुं स्वरूप समजाव्युं हतुं. जयपुरमां रात्रे तत्त्वचर्चा पण सुंदर चालती
हती.... विद्वानोनी अध्यात्मगोष्ठीनो मधुर गूंजारव मुमुक्षुओने बहु प्रिय लागतो हतो.
जेठ सुद सातमनी सांजे गुरुदेव साथे सो जेटला यात्रिको (जयपुरथी वीसेक
माईल दूर) पद्मपुरी पद्मप्रभुना दर्शने गया हता. सं. २००१ मां एक खेतरमांथी
पद्मप्रभुनी प्रतिमा प्रगट थई अने त्यारथी आ भूमिमां पुण्यभाव शरू थयो; एक
विशाळ उन्नत जिनमंदिर तैयार थयुं–जेनुं काम हजी चाली रह्युं छे. मंदिरनुं वाता