सुंदर गंधफूटी पर बिराजमान पद्मप्रभुनी गुलाबी प्रतिमा अति उपशांत – मनोज्ञ ने
शांतभावप्रेरक छे. ते उपरांत बीजा अनेक जिनबिंबो, बाहुबली भगवान वगेरे पण
बिराजे छे. गुरुदेव साथे आनंदोल्लासपूर्वक दर्शन करी अर्धपूजा करी, ने पु. बेनश्री –
बेने पद्मप्रभुना मनोहरदरबारमां वीतरागी पद्मप्रभुनी अद्भुत भक्ति करावी.
खरेखर, वीतराग भगवाननी खरी भक्ति वीतरागताना ध्येय वडे ज थाय छे,
संसारना ध्येय वडे भगवाननी भक्ति थई शकती नथी. दरेक जैननुं कर्तव्य छे के
शुद्धात्माना प्रतिबिंबरूप आपणा वीतराग अरिहंतदेवना दर्शनपूजनमां मात्र
वीतरागभावनाना पोषणनो ज हेतु राखे. संसारना लाभनो हेतु (– पुत्रप्राप्ति,
धनप्राप्ति, नीरोगता – प्राप्ति वगेरे पापनो हेतु) जरापण न राखे.... अने भगवान
अरिहंतदेव सिवाय बीजा कोई सराग देव–देवीने तो स्वप्नेयय पूज्य न माने.
खरेखर तो अंदर आत्मा पोते शाश्वत चैतन्यप्रतिमा छे, तेना दर्शन विना अने
तेना आश्रय विना बीजी कोई रीते कल्याण थतुं नथी. आ बहारनी जिनप्रतिमा तो
अंदरनी चैतन्यप्रतिमाना स्मरणनुं निमित्त छे, तेने बदले प्रतिमाना दर्शनथी धन –
पुत्रादिनी ईच्छा करवी के रोगादि मटवानी ईच्छा करवी ते तो पाप छे; ने एवी
ईच्छा वगर भगवानना दर्शन–पूजन करे तो ते शुभभाव छे; पण आत्मानुं कल्याण
अने धर्म तो अंदर आत्मा पोते निर्विकल्प शुद्ध चैतन्यप्रतिमा शाश्वत – टंकोत्कीर्ण छे
तेने लक्षमां लईने तेना ज आश्रये थाय छे; एना आश्रय वगर बीजी कोई रीते
जीवनुं कल्याण नथी कोतर्या वगरनी शाश्वत ज्ञायकमूर्ति–जिनप्रतिमा आत्मा पोते छे
ते ज पोतानो देव छे अने ते ज चैतन्य चिंतामणि छे, तेनां दर्शन करतां ने तेनुं
चिंतन करतां मिथ्यात्वादि पापोनो नाश थाय छे ने ईष्टपदनी सिद्धि थाय छे. बाकी
पोताने भूलीने परने भजे तेथी कल्याण थाय तेम नथी.
भक्ति वगेरे देखीने पद्मपुरीना व्यवस्थापको पण खुशी थया.