: १० : आत्मधर्म : श्रावण : २४९७ :
सम्यग्दर्शनना आठ अंगनी कथा
समकितसहित आचार ही संसारमें ईक सार है,
जिनने किया आचरण उनको नमन सोसो वार है;
उनके गुणोंके कथनसे गुणग्रहण करना चाहिए,
अरू पापियोंका हाल सुनके पाप तजना चाहिए.
[प्रथम निःशंकअंगमां प्रसिद्ध अंजनचोरनी कथा, बीजी निःकांक्षअंगमां प्रसिद्ध
सती अनंतमतिनी कथा, त्रीजी निर्विचिकित्सा–अंगमां प्रसिद्ध उदायन
राजानी कथा तथा चोथी अमूढ द्रष्टि–अंगमां प्रसिद्ध रेवतीराणीनी
कथा आपे वांची; पांचमी कथा आप अहीं वांचशो.]
(५) उपगूहन–अंगमां प्रसिद्ध जिनेन्द्रभक्त शेठनी कथा
पादलिप्तनगरमां एक शेठ रहेता हता; तेओ महान जिनभक्त हता, सम्यक्त्वना
धारक हता, अने धर्मात्माना गुणोनी वृद्धि तथा दोषोनुं उपगूहन करवा माटे प्रसिद्ध हता.
पुण्य प्रतापे तेओ घणां वैभवसंपन्न हता; तेमने सात माळनो महेल हतो, तेमां सौथी
उपरना भावमां एक अद्भुत चैत्यालय बनाव्युं हतुं; तेमां रत्नमांथी बनावेल भगवान
पार्श्वनाथनी मनोहर मूर्ति हती, तेना उपर रत्नजडित त्रण छत्र हता; ते छत्रमां एक
नीलमरत्न घणुं ज किंमती हतुं, अंधारामां पण ते झगझगाट करतुं हतुं.
हवे सौराष्ट्रना पाटलिपुत्र नगरनो राजकुमार–के जेनुं नाम सुवीर हतुं अने
कुसंगने लीधे जे दूराचारी तेम ज चोर थई गयो हतो, तेणे एकवार शेठनुं जिनमंदिर
जोयुं अने तेनुं मन ललचायुं.–भगवाननी भक्तिथी नहि, परंतु किंमती नीलम रत्ननी
चोरी करवाना भावथी.