Atmadharma magazine - Ank 334
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९७ :
जेम माता ईच्छे छे के मारो पुत्र उत्तम गुणवान थाय; छतां पुत्रमां कोई
नानोमोटो दोष देखाय तो तेने ते प्रसिद्ध नथी करती, पण एवो उपाय करे छे के तेना
गुणनी वृद्धि थाय. तेम धर्मात्माओ पण धर्मनो अपवाद थाय तेवुं करता नथी, पण
धर्मनी प्रभावना थाय तेवुं करे छे. कोई गुणवान धर्मात्मामांं कदाचित दोष थई जाय तो
तेने गौण करीने तेनां गुणोने मुख्य करे छे, ने एकांतमां बोलावी, तेने प्रेमथी
समजावी, जेम तेना दोष दूर थाय ने धर्मनी शोभा वधे तेम करे छे.
लोको चाल्या गया पछी जिनभक्त शेठे पण ते सूर्यचोरने एकांतमां बोलावीने
ठपको आप्यो, अने कह्युं–भाई! आवुं पापकार्य तने शोभतुं नथी; विचार तो कर के तुं
पकडायो होत तो तने केटलुं दुःख थात? माटे आवा धंधाने तुं छोड!
ते चोर पण शेठना आवा उमदा व्यवहारथी प्रभावित थयो, ने पोताना
अपराधनी माफी मांगता तेणे कह्युं–शेठ! आपे ज मने बचाव्यो छे; आप जैनधर्मना
खरा भक्त छो. लोकोनी समक्ष आपे ज मने ‘सज्जन–धर्मात्मा’ कहीने ओळखाव्यो,
तो हवे हुं पण चोरी छोडीने खरेखर सज्जन धर्मात्मा थवानो प्रयत्न करीश. खरेखर,
जैनधर्म महान छे, अने आपना जेवा सम्यग्द्रष्टि जीवो वडे ते शोभे छे.
आ रीते ते शेठना उपगूहनगुणने लीधे धर्मनी प्रभावना थई.
[आ कथा आपणने एम शीखवे छे के साधर्मीना
कोई दोषने मुख्य करीने धर्मनी निंदा थाय तेम न करवुं;
पण प्रेमपूर्वक समजावी तेने ते दोषथी छोडाववो; अने
धर्मात्माना गुणोने मुख्य करीने तेनी प्रशंसाद्वारा धर्मनी
वृद्धि थाय तेम करवुं.
]
आत्मधर्ममां आवती सम्यकत्वना आठ अंगनी आ कथाओ
सौने खूब ज गमी छे ने सम्यकत्व प्रत्ये परम बहुमान जगाडे छे.
आठअंगनी आठे कथाओ आ चालु वर्षमां ज पूरी करवानी होवाथी आ
अंकमां बे कथाओ आपवामां आवी छे.