Atmadharma magazine - Ank 334
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९७ :
हेतुथी कह्युं के–आपणे नाना हता त्यारे आ तळावे आवता अने केरीना झाड नीचे साथे
रमता हता, आ झाड गामथी बेत्रण माईल दूर छे......आपणे गामथी दूर आवी गया
छीए....
–ते सांभळवा छतां वारिषेणमुनिए तेने रोई जवानुं न कह्युं. अहा, परम
हितस्वी मुनिराज एने मोक्षनो मार्ग छोडीने संसारमां जवानुं केम कहे? तेमने तो एम
हतुं के मारो मित्र पण मोक्षना मारगमां मारी साथे ज आवे.–
हे सखा! चालने...मारी साथ मोक्षमां,
छोड पर भावने...झूल आनंदमां.
अमे जशुं मोक्षमां...केम तने छोडशुं?
चालने मोक्षमां...तुंय अम साथमां.
अहा, जाणे के पोतानी पाछळ पाछळ चालनाराने मोक्षमां ज लई जता होय–
एम परमनिस्पृहताथी मुनि तो आगळ ने आगळ चाल्या जाय छे. पुष्पडाल पण
लाजेशरमे तेमनी पाछळ जई रह्यो छे.
अंते तेओ आचार्यमहाराज पासे आवी पहोच्या ने वारिषेणमुनिए कह्युं–
प्रभो! आ मारो पूर्वनो मित्र छे, ने संसारथी विरक्त थईने आपनी पासे दीक्षा लेवा
आव्यो छे. आचार्यमहाराजे तेने निकटभव्य जाणीने दीक्षा आपी दीधी. अहा, साचा
मित्र तो ए छे के जीवने भवसमुद्रथी जे उगारे.
हवे, मित्रना अनुग्रहवश पुष्पडाल जो के मुनि थई गयो, अने बहारमां मुनिने
योग्य क्रियाओ करवा लाग्यो; पण एनुं चित्त हजी संसारथी छूटयुं न हतुं. भाव–
मुनिपणुं हजी तेने थयुं न हतुं; दरेक क्रियाओ करतां तेने पोतानुं घर याद आवतुं हतुं;
सामयिक वखतेय तेने वारंवार पोतानी स्त्रीनुं स्मरण थया करतुं हतुं. वारिषेणमुनि
तेमना मनने स्थिर करवा माटे तेनी साथे ज रहीने तेने वारंवार उत्तम ज्ञान–वैराग्यनो
उपदेश देता हता. पण हजी तेनुं मन धर्ममां स्थिर थयुं न हतुं.
एम करतां करतां १२ वर्ष वीती गया. एक वार ते बंने मुनिओ महावीर
भगवानना समवसरणमां बेठा हता, त्यारे ईंद्रे प्रभुनी स्तुति करतां कह्युं के हे नाथ!
आ राजपृथ्वी छोडीने आप मुनि थया तेथी पृथ्वी अनाथ थईने आपना विरहमां झूरे
छे, अने तेना आंसुओ आ नदीरूपे वही रह्या छे.