Atmadharma magazine - Ank 334
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९७ : आत्मधर्म : १५ :
अहा, इंद्रे तो स्तुति वडे भगवानना वैराग्यनी स्तुति करी; पण जेनुं चित्त हजी
वैराग्यमां लाग्युं न हतुं एवा पुष्पडालने तो ते श्लोक सांभळीने एम थयुं के अरे!
मारी स्त्री पण ए पृथ्वीनी जेम बार वर्षथी मारा वगर झूरती हशे ने दुःखी थती हशे.
में बार वर्षथी एनुं मोढुं जोयुं नथी, मने पण एना विना चेन पडतुं नथी. माटे चाल,
एनी संभाळ करी आवुं. थोडो वखत एनी साथे रहीने पछी दीक्षा लई लईश.
–आम विचारी पुष्पडाल तो कोईने पूछया–गाछया वगर घर तरफ जवा
लाग्यो. वारिषेणमुनि एनी चेष्टा समजी गया, तेमना हृदयमां मित्र प्रत्येनुं
धर्मवात्सल्य जाग्युं, अने कोई पण रीते तेने धर्ममां स्थिर करवो जोईए–एम विचारी
तेओ पण तेनी साथे चाल्या, अने तेने साथे लईने पोताना राजमहेलमां आव्या.
मित्र सहित पोताना कुंवरने महेलमां पाछो आवतो देखीने चेलणा राणीने
आश्चर्य थयुं ने वारिषेण मुनिदशा न पाळी शकवाथी पाछो आव्यो के शुं! एम तेने
संदेह थयो. तेथी परीक्षा माटे तेणे एक लाकडानुं आसन अने बीजुं सोनानुं आसन
राख्युं; पण वैरागी वारिषेणमुनि तो वैराग्यपूर्वक लाकडाना ज आसने बेठा. आथी
विचक्षण चेलणादेवी समजी गई के कुंवरनुं मन तो वैराग्यमां द्रढ छे; तेना आगमनमां
बीजो ज कोई हेतु हशे.
वारिषेणमुनि आवतां ज तेनी गृहस्थाश्रमनी ३२ राणीओ पण दर्शनार्थे आवी.
राजमहेलनो अद्भुत वैभव अने आवी सुंदर ३२ रूपयौवनाओने देखीने पुष्पडाल तो
आश्चर्य पामी गयो......के अरे! आवो राजवैभव अने आवी सुंदर ३२ राणीओ छतां
आ राजकुमार तेनी सामे पण नथी जोतो, तेने छोडया पछी याद पण नथी करतो, ने
आत्माने ज साधवामां एणे पोतानुं चित्त जोडी दीधुं छे. –वाह, धन्य छे एने! अने हुं
तो एक साधारण स्त्रीनो मोह पण मनमांथी छोडी शक्तो नथी. अरेरे! बार–बार
वर्षनुं मारुं साधुपणुं नकामुं गयुं.
वारिषेणमुनिए पुष्पडालने कह्युं: हे मित्र! हजी पण जो तने संसारनो मोह होय
तो तुं अहीं रही जा अने आ बधा वैभवने भोगव! अनादि काळथी जे संसारने
भोगववा छतां तृप्ति न थई, ते एठने हजी पण तुं भोगववा मांगतो हो तो......ले, आ
बधुं तुं भोगव! वारिषेणनी वात सांभळीने पुष्पडालमुनि अत्यंत शरमाई गया,
एनी आंख उघडी गई, एनो आत्मा जागी ऊठ्यो.