Atmadharma magazine - Ank 334
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९७ :
आत्मानी ज रुचि पुष्ट करे छे. आनुं नाम आत्मार्थिता!
(काम एक आत्मार्थनुं, बीजो नहीं मन रोग.)
–आवी आत्मरुचि थाय त्यारपछी ज चारित्र होय. चारित्र एटले आत्माना
आनंदमां प्रवेश. आत्माना आनंदमां प्रवेशतां जे वीतराग चारित्ररूप शुद्धभाव
प्रगट्यो ते धर्म छे, रागनो तेमां अभाव छे.
परिणाम ते आत्मानो स्वभाव छे, ते परिणामरूपे आत्मा पोते परिणमे छे.
आत्मा पोताना परिणाममां ते काळे तन्मय थईने परिणमे छे, तेथी शुद्धचारित्र–
परिणतिरूपे थयेलो आत्मा पोते ज चारित्र छे. चारित्रपर्यायवाळो आत्मा ते पोते
चारित्र छे; आत्मानुं चारित्र रागमां के नग्न शरीरमां नथी.
देहथी भिन्न, रागथी पार जे पोतानो शुद्ध आत्मा छे ते ध्येयने धर्मी कदी चुक्ता
नथी. आवा आत्माने ध्येय करतां अतीन्द्रिय आनंद थाय छे.
आत्मा सत् वस्तु छे; वस्तु स्वयमेव परिणाम–स्वभाववाळी छे. आत्माना
परिणाम शुभ–अशुभ ने शुद्ध त्रण प्रकारनां छे; तेमांथी जे काळे जे परिणामरूपे आत्मा
परिणमे छे ते काळे ते परिणाम साथे तेने तन्मयपणुं छे. तेमाथी शुभ ने अशुभ
परिणति तो बंधनुं कारण थाय छे एटले संसारनुं कारण छे; ने शुद्धपरिणति ते धर्म छे,
ते मोक्षनुं कारण छे.
सर्वज्ञनी जेने श्रद्धा थई तेने ज्ञाननी रुचि थई, जेने ज्ञाननी रुचि थई तेने
रागनी रुचि तूटी गई, एटले संसार छूटी गयो, ने मोक्षमार्ग खुली गयो; तेने हवे
अल्पकाळमां ज मोक्षदशा थशे. अनंत भव तेने होय नहीं. भगवान पण एम ज देखे
छे के आ जीव ज्ञानस्वभावनो आराधक थयो छे अने अल्पकाळमां मोक्ष पामशे. आ
रीते ज्ञानना निर्णयमां मोक्षमार्गनो पुरुषार्थ छे.
जेने ज्ञानस्वभावनी श्रद्धा थई तेने केवळज्ञाननी श्रद्धा थई, केमके केवळज्ञान तो
ज्ञानशक्तिमां पड्युं छे. अने केवळज्ञाननी श्रद्धा थतां ज रागथी भेदज्ञान थई गयुं.
ज्ञानपर्याय अंतर्मुख थईने ज्ञानस्वभावमां धूसी गई त्यारे आ बधो निर्णय थयो, ने
तेमां मोक्षनो पुरुषार्थ आवी गयो.
भगवान अरिहंतदेवना आत्मानुं स्वरूप ओळखीने पोताना आत्मा साथे तेनी
मेळवणी करतां धर्मीजीव एम जाणे छे के–