शुद्धोपयोग वडे थतुं आवुं अतीन्द्रिय सुख ज मारे सर्वथा प्रार्थनीय छे; ए सिवाय
संसारमां बीजुं कांई, पुण्य के तेना फळरूप स्वर्गादि पण ईच्छवा योग्य नथी, केमके तेमां
कांई आत्मानुं सुख नथी; पुण्यमां लीन थयेला जीवो पण आकुळतानी अग्निमां बळी
रह्या छे, ने दुःखी छे. सुखी तो शुद्धोपयोगी जीवो छे.
कषायभावो अपास्त करवा जेवा छे, छोडवा जेवा छे.
ज नहि. बहारना पदार्थो सदा माराथी छूटेला जुदा ज छे, तेनुं ग्रहण के त्याग मारामां
नथी. ज्ञान अने सुखस्वरूप मारो आत्मा छे, तेमां उपयोगनी एकाग्रता थई त्यां
शुभाशुभ पण छूटी गया ने परम वीतरागसुखनो अनुभव रह्यो. अहो, आवी
शुद्धोपयोगदशा ज परम प्रशंसनीय छे.
आपरूप अनुभव करते हैं
करता नथी एटले शरीरादि परनी क्रियाने पोतानी मानता नथी, पोताना
ज्ञानादिकस्वभावने ज पोताना माने छे. रागादि परभावोमां ममत्व करता नथी
शुभराग थाय छे तेने पण हेय जाणीने छोडवा मांगे छे. अशुभमां ने शुभमां बंनेमां
आकुळताना अंगारा छे; चैतन्यनी शांति तो शुद्धोपयोगमां ज छे.
आह्लादरूप सुखनो स्वाद पहेलीवार आव्यो. ने पछी तेमां लीनता वडे शुद्धोपयोगथी
केवळज्ञान थतां तो ते सुख अतिशयपणे अनुभवमां आव्युं, आखो सुखनो दरियो