Atmadharma magazine - Ank 334
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९७ :
“नाटक सुनत हिये फाटक खुलत है”
समयसार–नाटक द्वारा शुद्धात्मानुं श्रवण
करतां हैयानां फाटक खुली जाय छे
[समयसारनाटकनां अध्यात्मरसझरता प्रवचनोमांथी लेखांक–७]
* * * * *
जिनशास्त्रोमां कहेलां सात तत्त्वोमांथी जीवतत्त्वनुं वर्णन चाले छे. तेमां जीवना
समता, रमताम, ऊर्घ्वता, ज्ञायकता वगेरे स्वभावनुं वर्णन कर्युं; हवे सुख–स्वभावनुं
वर्णन करे छे. सुख कोई बाह्यसंयोगोमां नथी; सुख तो जीवनो ज स्वभाव छे. सुख
जेनो स्वभाव छे ते जीव छे. ‘हुं सुखी छुं’ एवो भास जीवमां ज छे, बीजा कोई
पदार्थमां तेवो सुखनो भास नथी.
‘सुखभास’ ना अर्थमां जीवना सुखस्वभावनी सिद्धि करतां श्रीमद्राजचंद्रजीए
सरस लख्युं छे : शब्दादि पांच विषयसंबंधी, अथवा समाधि आदि जोग संबंधी जे
स्थितिमां सुख संभवे छे ते, भिन्न भिन्न करी जोतां मात्र छेवटे ते सर्वने विषे सुखनुं
कारण, एक ज एवो ए ‘जीवपदार्थ’ संभवे छे, तेथी तीर्थंकरदेवे ते सुखभास नामनुं
लक्षण जीवनुं कह्युं छे; अने व्यवहारद्रष्टांते निद्राथी ते प्रगट जणाय छे. जे निद्राने विषे
बीजा सर्व पदार्थथी रहितपणुं छे त्यां पण ‘हुं सुखी छुं’ एवुं जे ज्ञान छे ते बाकी वधेल
जीवपदार्थनुं छे; बीजुं कोई त्यां विद्यमान नथी. अने सुखनुं भासवापणुं तो अत्यंत स्पष्ट
छे. आ रीते सुखनो भास थवारूप लक्षण भगवाने जीव नामना पदार्थ सिवाय बीजे
क्यांय जोयुं नथी. (बाह्यविषयोथी रहितपणुं समजाववा अहीं निद्राअवस्थानुं द्रष्टांत छे.)
जीव पोते सुखस्वरूप छे; पण पोताना सुखने जे भूल्यो छे ते अज्ञानथी
पांचईंद्रियना विषयरूप बाह्यपदार्थमां सुखनी कल्पना करे छे. ते सुखनी कल्पना
करनारो पोते ज सुखमय छे. पांचइंद्रियना जड विषयो एवा ने एवा पड्या होय
पण जो जीव न होय तो? तो तेमां सुखनी कल्पना कोण करे? विषयो एमने एम
होवा छतां जीव विना त्यां सुखनो भास थतो नथी. माटे विषयो सुखरूप नथी;
सुखनो भास जीव