Atmadharma magazine - Ank 334
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९७ : आत्मधर्म : २९ :
हे जीव! जेने लीधे बधुं रम्य लागे ने जेना विना बधुं शूनकार लागे–एवो रम्य
जीवस्वभाव छे, तेमां तुं रमक था, ने परद्रव्यनी रमकता शीघ्र छोड.
वाह! जुओ तो खरा...जीवनो स्वभाव! ज्ञानीओए तेने केवो मलाव्यो छे.
एवो महिमा एनामां छे, ते ज बताव्यो छे.
मुख्य एवो जे ‘जाणनारो’ तेना अस्तित्व विना कोईपण पदार्थनुं अस्तित्व
जाणी शकाय नहीं. ज्ञेयपदार्थोने स्वीकारे पण तेने जाणनारो हुं छुं–एम पोताना
अस्तित्वने न स्वीकारे तो तेने ज्ञान कोण कहे? जाणनारनी सत्ता छे तो ज्ञेयपदार्थो
जणाय छे. ज्ञान होय तो ज शरीर जणाय, ज्ञान होय तो ज जगतना अरिहंतसिद्ध
वगेरे जणाय, ज्ञान होय तो ज विकल्पो जणाय,–ए रीते सर्वे पदार्थोने जाणतां ज्ञाननी
हाजरी तो पहेली ज छे, एटले ज्ञानस्वरूपी आत्मा ज बधामां मुख्य छे; मुख्य एटले
ऊंचो; ऊंचो एटले ऊर्ध्व. जुओ तो खरा, चेतननो महिमा! बधा पदार्थोने जाणे छतां
बधाथी जुदो रहे, जगतनो खरो ईश्वर तो आवो आत्मा छे के जेनी हैयाती वगर कोई
पदार्थनुं अस्तित्व जणातुं नथी.
जीव पोताना ज्ञायकपणारूप लक्षण वडे जगतना बीजा बधा पदार्थोथी जुदो
ओळखाय छे. ते त्रणेकाळ ज्ञायकपणा सहित छे. त्रणे काळमां कदीपण ज्ञायकपणा
वगरनो जीव अनुभवी शकाय नहीं. आवुं ज्ञायकपणुं जीव सिवाय बीजा कोई पदार्थमां
होतुं नथी. अहो, तीर्थंकर भगवाने कहेला आवा जीवपदार्थने हे जीवो! तमे अनुभवमां
ल्यो. सर्वज्ञ परमात्माए जीवनुं आवुं अदभुत स्वरूप बताव्युं छे ते तमे समजो.
ज्ञायकपणा वगरनो जीव कदी न होय; शरीर वगरनो जीव होय, राग वगरनो
जीव होय, पण ज्ञान वगर जीवनुं अस्तित्व कदी न होय. ‘ज्ञायकभाव’ ते जीव छे. सुख
क््यांय पण होय तो ते आवा जीवस्वभावमां ज छे. बीजा विषयोमां सुखनी कल्पना
करे छे ते कल्पना करनारो कोण छे? ते कल्पना करनारो पोते ज सुखस्वरूप छे. तेनाथी
बहारमां तो कांई सुख ज छे नहीं. तनथी अतीत, ने मनथी ये अतीत, अतीन्द्रिय
ज्ञानस्वरूप आत्मा पोते ज सुखनुं धाम छे, तेमां ज संतोने सुख भासे छे, बीजे क््यांय
किंचित् सुख भासतुं नथी. अंतरमां ज जीवना आवा विलासने हे जीवो! तमे जाणो.