अस्तित्वने न स्वीकारे तो तेने ज्ञान कोण कहे? जाणनारनी सत्ता छे तो ज्ञेयपदार्थो
जणाय छे. ज्ञान होय तो ज शरीर जणाय, ज्ञान होय तो ज जगतना अरिहंतसिद्ध
वगेरे जणाय, ज्ञान होय तो ज विकल्पो जणाय,–ए रीते सर्वे पदार्थोने जाणतां ज्ञाननी
हाजरी तो पहेली ज छे, एटले ज्ञानस्वरूपी आत्मा ज बधामां मुख्य छे; मुख्य एटले
ऊंचो; ऊंचो एटले ऊर्ध्व. जुओ तो खरा, चेतननो महिमा! बधा पदार्थोने जाणे छतां
बधाथी जुदो रहे, जगतनो खरो ईश्वर तो आवो आत्मा छे के जेनी हैयाती वगर कोई
पदार्थनुं अस्तित्व जणातुं नथी.
वगरनो जीव अनुभवी शकाय नहीं. आवुं ज्ञायकपणुं जीव सिवाय बीजा कोई पदार्थमां
होतुं नथी. अहो, तीर्थंकर भगवाने कहेला आवा जीवपदार्थने हे जीवो! तमे अनुभवमां
ल्यो. सर्वज्ञ परमात्माए जीवनुं आवुं अदभुत स्वरूप बताव्युं छे ते तमे समजो.
क््यांय पण होय तो ते आवा जीवस्वभावमां ज छे. बीजा विषयोमां सुखनी कल्पना
करे छे ते कल्पना करनारो कोण छे? ते कल्पना करनारो पोते ज सुखस्वरूप छे. तेनाथी
बहारमां तो कांई सुख ज छे नहीं. तनथी अतीत, ने मनथी ये अतीत, अतीन्द्रिय
ज्ञानस्वरूप आत्मा पोते ज सुखनुं धाम छे, तेमां ज संतोने सुख भासे छे, बीजे क््यांय
किंचित् सुख भासतुं नथी. अंतरमां ज जीवना आवा विलासने हे जीवो! तमे जाणो.