Atmadharma magazine - Ank 334
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९७ : आत्मधर्म : ३१ :
पण दुर्गतिमां जता होय छे. माटे दिवसनुं खरूं महत्त्व नथी पण
आत्माना वीतरागधर्मनी उपासनानुं खरूं ज महत्त्व छे.
(८२) प्रश्न:– सम्यग्दर्शनमां एवुं शुं छे के सौथी पहेलां तेनी ज वात करवामां आवे छे?
उत्तर:–सम्यग्दर्शनमां पोताना आखा आत्मानो स्वीकार छे. सम्यग्दर्शन वगर
पोताना आत्मानुं साचुं अस्तित्व देखातुं नथी. पहेलां सिद्ध भगवान
जेवडा महान पोताना आत्मानो साचो स्वीकार थाय तो ज जीव धर्ममां
आगळ वधी शके. अने एवो स्वीकार सम्यग्दर्शनमां ज थाय छे. माटे
धर्ममां सौथी पहेलां ज सम्यग्दर्शननी वात छे. ज्यां सम्यग्दर्शन नथी
त्यां धर्म नथी. ज्यां सम्यग्दर्शन छे त्यां आखो आत्मा छे.
(८३) प्रश्न:–अरिहंतभगवाननी भक्ति करवाथी शुं थाय?
उत्तर:–अरिहंतभगवाननी भक्ति–पूजा वगेरेमां शुभभाव छे ते पुण्यनुं
कारण छे. पण अरिहंतदेव एटले जेने पूरुं ज्ञान छे ने जेने राग
जराय नथी–एवा आत्मानुं स्वरूप ओळखतां पोतामां पण ज्ञान अने
रागनुं भेदज्ञान थईने सम्यग्दर्शन थाय छे.
(८४) प्रश्न:–एक माणस अनेक चीज खाय छे, त्यां दरेक चीजनो अलग अलग
स्वाद छे–ते कोणे बताव्युं? जीवे के शरीरे? जीवमां तो ते स्वाद
आवतो नथी तो तेणे कई रीते बताव्युं? ने शरीर तो कांई जाणतुं
नथी तो तेणे कई रीते बताव्यु? (राजु एम. जैन कलकत्ता)
उत्तर:–जीवे जाण्युं, ने शरीरनी भाषाए बताव्युं; जीवमां एवी ताकात छे के
पोताथी जुदी वस्तुने पण ते जाणी ल्ये छे. जड वस्तु आत्मामां प्रवेशे तो
ज तेनुं ज्ञान थई शके–एम नथी. ते भिन्न रहीने ज्ञाननुं ज्ञेय थाय छे.
अने लगभग एवो निमित्तनैमित्तिक संबंध छे के जेवुं ज्ञानमां आव्युं
होय तेवुं वाणीमां आवे, विरुद्ध न आवे. आम छतां ज्ञान चेतन छे, ने
वाणी जड छे. (बीजा प्रश्ननो उत्तर पण आ ज शैलिथी समजी लेवो.)
(८५) प्रश्न:–आत्मा क्षेत्रथी अखंडित होवाना कारणे तेना खंड थई शके नहि –एटले शुं?
(रसिकलाल एच. जैन. मुंबई)
उत्तर:–आत्मा असंख्यप्रदेशी होवा छतां तेनामां एवुं अखंडितपणुं छे के,–