: ३२ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९७ :
जेम एक पेन्सीलना जुदा जुदा बे भाग थई शके छे तेम एक
आत्माना जुदा जुदा बे भाग थई शक्ता नथी.
(८६) प्रश्न:–कोईने ज्ञान छे–जाणपणुं छे पण अनुभव नथी, तो ते ज्ञान केवुं? अने
तेनुं गुणस्थान कर्यु? ते ज्ञान मोक्षने माटे उपयोगमां आवे खरूं?
(रजनी एम. जैन. मुंबई)
उत्तर:–स्ववस्तुनुं ज्ञान होय तो अनुभव पण होय ज स्ववस्तुनुं साचुं ज्ञान
थाय ने अनुभव न थाय–एम बने नहि. जो अनुभव नथी तो साचुं
ज्ञान ज नथी; ते तो एकलुं परलक्षी जाणपणुं छे. जे ज्ञान स्वलक्षी छे
ते तो उपयोगने अंतरमां वाळीने आत्मानो अनुभव करे ज छे. जे
ज्ञाने शास्त्र वांचीने के सांभळीने धारणा तो करी, पण आत्मा तरफ
न वळ्युं–तो ते ज्ञान ने कोण कहे? ए तो अज्ञान छे; एनुं गुणस्थान
पहेलुं छे. ते एकलुं परलक्षी ज्ञान मोक्षने साधी शक्तुं नथी.
आत्मा तो स्वानुभूतिथी प्रकाशे छे–एटले के स्वानुभूतिरूप ज्ञान
वडे ज आत्मानी ओळखाण थाय छे, ने ते ज साचुं ज्ञान छे. ते ज्ञानवडे
गुणस्थान चडतां चडतां आत्मा केवळज्ञान पामे छे. तेथी कह्युं छे के–
‘भेदज्ञान ते ज्ञान छे; बाकी बूरुं अज्ञान. ’
नीचेना १० प्रश्न अने उत्तर घाटकोपर–पाठशाळानी परीक्षामांथी रजु थाय छे–
(८७) प्रश्न:–तमे कोण छो? (उत्तर) अमे जिनवरनां संतान छीए.
(८८) प्रश्न:–तमने भगवान थवुं गमे के राजा? (भगवान)
(८९) प्रश्न:–एक धर्ममातानां त्रण पुत्रोनां नाम शुं?
उत्तर:–मंगलकुमार, उत्तमकुमार, शरणकुमार.
(९०) प्रश्न:–भरतचक्रवर्ती कोना पुत्र? (ऋषभदेवना)
(९१) प्रश्न:–रागने जैनधर्म कहेवाय के वीतरागताने? (वीतरागताने)
(९२) प्रश्न:–ऋषभदेवना जीवे पूर्वे आठमा भवे मुनिओने आहारदान दीधुं, ते देखीने
जे चारतिर्यंचो (सिंह, वांदरो, भूंड अने नोळियुं) खुशी थया, तेमनुं पछी
शुं थयुं?