Atmadharma magazine - Ank 334
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २४९७ : आत्मधर्म : ३३ :
उत्तर:–बीजा भवे ते चारे जीवो भोगभूमिमां सम्यग्दर्शन पाम्या, ने पछी
अंतिमभवमां ऋषभदेवना ज दीकरा थईने मोक्ष पाम्या.
(९३) प्रश्न:–ऋषभदेव तीर्थकर क्यां जन्म्या? ने क्यारे? (अयोध्यामां; फागणवद नोमे)
(९४) प्रश्न:–मंगलरूप चार छे ते कोण? (अरिहंत, सिद्ध, साधु अने धर्म)
(९५) प्रश्न:–आत्माने आकार होय? (हा, अरूपी आकार छे.)
(९६) प्रश्न:–विश्व जीव छे के अजीव? (जीव अजीवना संग्रहने ज विश्व कहेवाय छे.)
(९७) प्रश्न:–आ संसारमां जीवने कोनुं शरण छे? (मीनाक्षीबेन जैन–वढवाण)
उत्तर:–आ अशरण संसारमां जीवने पोताना वीतरागभावरूप धर्मनुं ज
शरण छे; अने निमित्तपणे वीतरागी देव–गुरुनुं शरण छे.
(९८) प्रश्न:–कैलास पर्वत क्यां छे? त्यां जईने कोई पाछुं आवी शके?
(भारतीबेन, मुडेटी)
उत्तर:–हालमां वर्तमानगोचर क्षेत्रथी घणे दूर (पण आ भरतक्षेत्रमां ज)
उत्तर–पूर्व दिशा तरफ कोई स्थळे कैलासगिरि आवेल छे. अगाउ तो
घणा जीवो त्यां यात्रा करवा जता, ने पाछा आवता; ज्यारे
भरतचक्रवर्ती छखंड जीतीने अयोध्या तरफ पाछा आवता हता त्यारे
वच्चे रस्तामां कैलासगिरि पर बिराजमान परमपिता भगवान
ऋषभदेवना दर्शन करवा गया हता. ऋषभदेव भगवान त्यांथी मोक्ष
पाम्या छे. हालमां त्यां जई शकातुं नथी. परंतु पंचमकाळमां
कैलासगमननो कांई सर्वथा निषेध नथी. कदाच ते कैलासपर्वतनी
आसपासमां मनुष्यो वसता पण होय. अनेक देवो तेनी वंदना करवा
आवता हशे. आपणे पण तेने परोक्ष नमस्कार करीए छीए.
(९९) प्रश्न:–अरिहंत अवस्था शाथी प्राप्त थाय? (जनकराय, मुडेटी)
उत्तर:–शुद्धरत्नत्रयवडे मोहरूपी अरिने हणतां अरिहंतदशा थाय छे.
शुद्धरत्नत्रय कहो के वीतराग–विज्ञान कहो.–
मंगलमय मंगलकरण वीतरागविज्ञान;
नमुं तेह जेथी थया अरहंतादि महान.