: ३४ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९७ :
(१००) प्रश्न:–मोक्षधाम क्यां छे? त्यां कई रीते जई शकाय? (जशवंत, मुडेटी)
उत्तर:–‘मोक्ष कह्यो निजशुद्धता’–आत्माना ज्ञानादि सर्वे गुणोनी पूर्ण शुद्धता
थतां सर्वे बंधन छूटी जाय, तेनुं नाम मोक्ष छे; ते मोक्षनुं धाम आत्मा
पोते छे. अने भेदज्ञानवडे आत्मानी अनुभूति करतां–करतां
आनंदपूर्वक ते मोक्षधाममां जवाय छे.
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तत्त्वार्थसूत्रना पहेला ज सूत्रमां–
श्री पूज्यपादस्वामी सर्वार्थसिद्धिमां तत्त्वार्थसूत्रना पहेला ज सूत्रनी टीकामां
सम्यक् चारित्रनी व्याख्या करतां कहे छे के–‘संसारकारणनिवृत्तिं प्रत्यागुर्णस्य
ज्ञानवतः कर्मादाननिमित्तयिोपरमः सम्यक्चारित्रम्। अज्ञानपूर्वकाचरणनिवृत्त्यर्थं
सम्यक् विशेषणम्।’
संसारना कारणोने दूर करवा माटे उद्यमवंत एवा ज्ञानवान पुरुषने, कर्म–
ग्रहणना निमित्तरूप क्रियाओथी जे विरक्ति ते सम्यक् चारित्र छे. अज्ञानपूर्वकना
आचरणना निषेध माटे तेने ‘सम्यक्’ विशेषण कह्युं छे.
आमां पूज्यपादस्वामीए नीचेनी वस्तुस्थिति स्पष्ट करी छे–
* कर्मग्रहणना कारणरूप क्रियाओथी छूटवुं–ते साचुं चारित्र छे; शुभरागनी
क्रिया तो पुण्यकर्मना ग्रहणनुं निमित्त छे, एटले ते चारित्र नथी, ते मोक्षमार्ग
नथी; तेनाथी पण विरकित ते सम्यक्चारित्र छे, ने ते मोक्षमार्ग छे.
* आवुं सम्यक्चारित्र ज्ञानवान पुरुषने ज होय छे, अज्ञानीने होतुं नथी.
* ‘सम्यक’ विशेषण कहीने अज्ञानपूर्वकना आचरणनो मोक्षमार्गमांथी निषेध
कर्यो छे, एटले अज्ञानीनुं कोईपण आचरण (–कोईपण शुभक्रिया) ते साचुं
चारित्र नथी, ने ते मोक्षनुं कारण थतुं नथी.
मोक्षशास्त्रना पहेलां ज सूत्रमां पूज्यपादस्वामीए करेली आ सैद्धांतिक व्याख्या
आखाय मोक्षशास्त्रमां सर्वत्र लागु करीने मोक्षमार्गनुं स्वरूप ओळखवुं जोईए.