Atmadharma magazine - Ank 334
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 37 of 44

background image
: श्रावण : २४९७ : आत्मधर्म : ३५ :
ज्ञान–वैराग्यपोषक विविध वचनामृत
(अषाड वद ८ थी श्रावण सुद बीज)
* * * * *
* सम्यग्द्रष्टि ने केवो अनुभव होय छे–तेनी वात छे. अमे तो चैतन्यस्वभावपणे
ज आत्माने अनुभवीए छीए; चेतना ज अमारुं चिह्न छे; आत्मस्वभावथी
विरुद्ध जे कोई चिह्न छे ते बधाय माराथी पृथक् छे, ते बधाय कर्मपक्षमां छे,
मारां चैतन्यपक्षमां ते नथी. ए बधा भेद–विकल्पोनी जे व्यवहारचाल, तेनाथी
अत्यंत जुदो निश्चयस्वभावरूप शुद्ध चिन्मुद्राधारक हुं छुं. मारा आत्मानी आवी
अनुभूति मने थई छे.
* भाई, आ तो आत्मार्थीनी वात छे. जेने आत्माने सिद्ध करवो होय, एटले के
अनुभवमां लेवो होय–तेने माटे आ रीत छे. अरे, संसारना बीजा विकल्पो तो
दूर रह्या, अंदर पोतामां ने पोतामां ‘हुं कर्ता ने ज्ञान मारुं कार्य’–एवा कारक–
भेदना विकल्पो पण मारा चैतन्यना अनुभवमां नथी. विकल्पो ते कांई मारा
चैतन्यनी चाल नथी, मारी चैतन्यचालमां (चैतन्यपरिणतिमां,
चैतन्यअनुभूतिमां) ते कोई विकल्पोनी चाल नथी.
* अरे, चैतन्यना पोताना अभेद अनुभव सिवायनुं तो बधुंय उथापवा जेवुं छे.
आवा अनुभवना आंगणे आववुं पण दुर्लभ छे, अंदर ऊतरीने आवो
अनुभव करतां पोताने पोतानी प्रभुता ने अचिंत्य महता भासे छे. ज्यां
पोतानी प्रभुता पोतामां ज देखी त्यां बहारथी बीजा वडे मोटाई लेवानी बुद्धि
रहेती नथी, केम के हवे तो जगतना बीजा बधा पदार्थो करतां पोताना स्वरूपनो
ज महिमा अधिक भासे छे.
* अरे, आवा चैतन्यस्वरूपना विचारमां रहे तो बहारना बधा झगडा मटी जाय.
वीतरागमार्ग तो परम शांतिनो मार्ग छे, तेमां झगडा केवा? जेणे आत्मा
साधवो होय तेणे ज्ञान–दर्शनस्वरूप एक चिदानंद आत्माने जाणवो जोईए.
* अरे, हळवी–फूल चैतन्यचीज! एना उपर परभावना बोजा शा?