अनुभववो, ते मोक्ष पामवानी रीत छे. तेनुं ज ऊंडुं मथन करी करीने पत्तो
मेळववा जेवुं छे. भाई, आ जीवन तो चाल्युं जाय छे, तेमां अविनाशी
आत्माने प्राप्त करी ले, तेनो अनुभव करी ले. ‘आ हुं चैतन्य छुं ने आ रागादि
भावो जुदा छे’–एम भिन्नताना अनेकविध सूक्ष्म विकल्पोने पण आत्माना
स्वरूपथी भिन्न जाणवा; ने एनाथी पण ऊंडा ज्ञानलक्षणवडे अखंड आत्माने
अनुभवमां लेवो. अंदरना सूक्ष्म विकल्पोने पण बाद करतां जे एकलुं
चैतन्यस्वरूप परम शांत वेदाय छे–तेमां आत्मा बिराजमान छे; ते ज आत्मा
छे, एटले के ते ज हुं छुं; एनाथी बाह्य बीजा कोई भावो हुं नथी.
रहीने–निरपेक्षभावे पोते पोताना स्वरूपने साधी लेवा जेवुं छे.
तेरे घटमें जग वसे, तामें तेरो राज.
घटमां तारी ज्ञाननिधि बिराजे छे, तेमां तारू राज छे, तेनो तुं अनुभव कर.
भाई, परनी साथे तारे शुं संबंध छे? दुनियामां कोई वखाण करे के कोई निंदा
करे तेनाथी तारे शुं काम छे? तेमां तारूं कांई हित–अहित नथी. तारा
ज्ञानसामर्थ्यमां आखुं जगत ज्ञेयपणे जणाई जाय छे, अंतरमां आवा तारा
ज्ञानने तुं देख. बहारमां जगतना जीवो साथे तारे कांई काम नथी.
छे; अंतरमां सन्मुखता कर्या वगर क््यांय शांति नहि थाय. ज्ञानी तो अंतरमां
निजस्वभावने ग्रहीने शिवचाल चाले छे; पोते पोतामां मोक्षमार्गने साधे छे.