Atmadharma magazine - Ank 334
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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*
हे जीव! बहु थयुं .....हवे बस!...तारा सहज स्वभावमां आवी जा.
* चिदानंद प्रभु आत्माने शरीरथी कर्मथी ने अंदरना विकल्पोथी भिन्न अंतरमां
अनुभववो, ते मोक्ष पामवानी रीत छे. तेनुं ज ऊंडुं मथन करी करीने पत्तो
मेळववा जेवुं छे. भाई, आ जीवन तो चाल्युं जाय छे, तेमां अविनाशी
आत्माने प्राप्त करी ले, तेनो अनुभव करी ले. ‘आ हुं चैतन्य छुं ने आ रागादि
भावो जुदा छे’–एम भिन्नताना अनेकविध सूक्ष्म विकल्पोने पण आत्माना
स्वरूपथी भिन्न जाणवा; ने एनाथी पण ऊंडा ज्ञानलक्षणवडे अखंड आत्माने
अनुभवमां लेवो. अंदरना सूक्ष्म विकल्पोने पण बाद करतां जे एकलुं
चैतन्यस्वरूप परम शांत वेदाय छे–तेमां आत्मा बिराजमान छे; ते ज आत्मा
छे, एटले के ते ज हुं छुं; एनाथी बाह्य बीजा कोई भावो हुं नथी.
–जेने आत्मानी शांति जोईती होय तेणे आ कर्ये छूटको छे. आना
सिवाय बीजी कोई ज रीत आत्मशांति माटे नथी.
* आत्माना अनुभव माटे अंदरमां घणी धीरज जोईए. आकुळता करे–ते कांई
उपाय नथी. ज्ञानमां आकुळता नथी, ज्ञान तो धीरुं छे–शांत छे. जगतथी उदास
रहीने–निरपेक्षभावे पोते पोताना स्वरूपने साधी लेवा जेवुं छे.
ए जगवासी यह जगत ईनसों तोहि न काज;
तेरे घटमें जग वसे, तामें तेरो राज.
अरे जीव! बहारनुं आ जगत के जगतना जीवो, एनाथी तारे शुं काम
छे? एनी साथे तारे कोई संबंध नथी. तुं तो तेनाथी भिन्न छो; तारा ज्ञान–
घटमां तारी ज्ञाननिधि बिराजे छे, तेमां तारू राज छे, तेनो तुं अनुभव कर.
भाई, परनी साथे तारे शुं संबंध छे? दुनियामां कोई वखाण करे के कोई निंदा
करे तेनाथी तारे शुं काम छे? तेमां तारूं कांई हित–अहित नथी. तारा
ज्ञानसामर्थ्यमां आखुं जगत ज्ञेयपणे जणाई जाय छे, अंतरमां आवा तारा
ज्ञानने तुं देख. बहारमां जगतना जीवो साथे तारे कांई काम नथी.
* अरेरे, देह तो क्षणे क्षणे मृत्युनी सन्मुख जई रह्यो छे...अवसर तो चाल्यो जाय
छे; अंतरमां सन्मुखता कर्या वगर क््यांय शांति नहि थाय. ज्ञानी तो अंतरमां
निजस्वभावने ग्रहीने शिवचाल चाले छे; पोते पोतामां मोक्षमार्गने साधे छे.