: ६ : आत्मधर्म : श्रावण : २४९७ :
सिंहना बच्चांनी वात
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सिंहनुं एक नानुं बच्चुं हतुं. भूलथी ते बकरीना टोळामां भळी गयुं; ने पोतानुं
सिंहपणुं भूलीने पोताने बकरुं ज मानवा लाग्युं. एकवार बीजा सिंहे तेने दीठुं. ने तेने
तेना सिंहपणानुं भान कराववा सिंहनाद कर्यो.
सिंहनी गर्जना सांभळतां ज बकरां तो बधाय भाग्या, पण आ सिंहनुं बच्चुं
तो निर्भयपणे ऊभुं रह्युं, सिंहना अवाजनी बीक एने न लागी. त्यारे बीजा सिंहे तेनी
पासे आवीने प्रेमथी कह्युं–अरे बच्चा! तुं बकरुं नथी, तुं तो सिंह छो. देख, मारी त्राड
सांभळीने बकरां तो बधा भयभीत थईने भाग्या, ने तने केम बीक न लागी?–केमके
तुं तो सिंह छो... मारी जातनो ज छो. माटे बकरानो संग छोडीने तारा सिंह–पराक्रमने
संभाळ.
वळी विशेष खातरी करवा तुं चाल मारी साथे, ने आ स्वच्छ पाणीना झरामां
तारुं मोढुं जो विचार कर के तारुं मोढुं कोना जेवुं लागे छे? मारा जेवुं (एटले के सिंह
जेवुं) लागे छे के बकरा जेवुं?
हजी विशेष लक्षण बताववां सिंहे कह्युं के तुं एक अवाज कर...अने जो के तारो
अवाज मारा जेवो छे के बकरा जेवो? सिंहना बच्चाए ज्यां त्राड पाडी त्यां