: श्रावण : २४९७ : आत्मधर्म : ७ :
तेने खातरी थई के हुं सिंह छुं; पाणीना स्वच्छ झरणामां पोतानुं मोढुं जोईने पण तेने
स्पष्ट देखाणुं के हुं तो सिंह छुं. भ्रमथी ज सिंहपणुं भूली, मारी निजशक्तिने भूलीने
मने बकरा जेवो मानी रह्यो हतो.
आ तो एक द्रष्टान्त छे; तेम, सिंह जेवो एटले के सिद्धभगवान जेवो जीव
पोताना साचा रूपने भूलीने पोताने बकरीनां बच्चां जेवो दीन–हीन–रागी–पामर
मानी रह्यो छे. धर्मकेसरी एवा सर्वज्ञ परमात्मा पोते सर्वज्ञ थईने दिव्यवाणीरूपी
सिंहनादथी तेने तेनुं परमात्मापणुं बतावे छे: अरे जीव! जेवा अमे परमात्मा छीए
एवो ज तुं परमात्मा छो; बंनेनी एक ज जात छे. भ्रमथी तें पोताने पामर मान्यो छे
ने तारा परमात्मापणाने तुं भूल्यो छो. पण अमारी साथे तारी मुद्रा (लक्षण) मेळवीने
जो तो खरो, तो तने खातरी थशे के तुं पण अमारा जेवो ज छो. स्वसंवेदन–वडे तारा
स्वच्छ ज्ञानसरोवरमां देख तो तने तारी प्रभुता तारामां स्पष्ट देखाशे. स्वसन्मुख वीर्य
उल्लसावीने श्रद्धारूपी सिंहनाद कर, तो तने खातरी थशे के हुं पण सिद्धपरमात्मा जेवो
छुं, मारामांय सिद्ध जेवुं पराक्रम भर्युं छे! प्रभुताथी भरेलो तारो आत्मा पोताना
भान करतां ज निजवीर्यथी आत्मा जागी ऊठे छे, ने पोताना चिदानंदस्वभावनी
सन्मुख थई चार गतिनो अभाव करीने पोताना साचा स्वांगरूप सिद्धपदने पामे छे.
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स्वभाव – महेल
हे चैतन्यराजा! शास्त्रो अने सन्तो तने तारा स्वभावनो
महेल बतावे छे, तारा स्वभाव–महेलमां भरेलां निधान बतावीने
तने स्वमां लक्ष करावे छे, ने परनो महिमा छोडावे छे. परनुं माहात्म्य
छोडीने स्वमहिमामां लीन थवुं ते ज वीतरागी शास्त्रोनुं तात्पर्य छे.
भेदज्ञानना बळे जेओ निजमहिमामां लीन थाय छे तेओ ज
शुद्धात्मतत्त्वने पामीने कर्मोथी मुक्त थाय छे. अहा, चैतन्यमहेलमां
जईने ‘आत्मवैभव’ ने लक्षमां ल्ये तो तेमां लीनता थया वगर रहे
नहीं, ने परनो महिमां आवे नहीं. – ‘आत्मवैभव’ मांथी.