Atmadharma magazine - Ank 335
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : भाद्रपद : २४९७
पर्युषणना प्रवचनोमांथी
दशलक्षणी पर्युषण पर्वना प्रवचनमांथी
स्वानुभूतिसूचक दोहन अहीं आपवामां आव्युं
छे; जिज्ञासुओने ते अत्यंत मननीय छे.
[भाद्र. सुद ७: वीर सं. २४९७ : समयसार नाटक : सर्वविशुद्धज्ञान द्वारा १२४–१२५–१२६]
आत्मानी अनुभूति वचनातीत छे;
तेमां मोक्षमार्ग समाय छे
ज्ञानी तथा अज्ञानीने बहारमां मुनिवेश एक सरखो देखाय छतां बंनेनी
अंतरंग परिणतिमां घणो फेर छे. ज्ञानीने तो स्व–परनी भिन्नताना भानवडे अंदर
सम्यग्ज्ञान–किरणनो प्रकाश प्रगट्यो छे; ते पोताना ज्ञानकिरणथी देहादिनी क्रियाने
अत्यंत जुदी जाणे छे. देहनी दशाने आत्मानी मानता नथी. छतां मुनिदशा होय त्यां
देहनी दिगम्बर–दशा ज होय छे, ते ज प्रमाण छे. ज्ञानीना अंतरमां मोक्षनी कणिका
जागी छे, शांतभाव जाग्यो छे, तेना वडे ते मोक्षमार्गसन्मुख वर्ती रह्या छे. सम्यग्द्रष्टि
गृहस्थ होय ने बाह्यमां त्यागी न होय, मुनिदशा न होय तोपण ते पोताने ज्ञानमय
अनुभवतो थको मोक्षमार्गनी सन्मुख ज छे.
अने अज्ञानीने अंतरमां ज्ञानकिरण तो जाग्युं नथी, अज्ञानथी तेनुं हृदय अंध
छे तेथी ते बंध भावने ज करे छे, तथा देहनी दशारूपे पोताने अनुभवे छे. देहथी ने
बंधभावथी भिन्न एवा पोताना चिदानन्द–तत्त्वने ते ओळखतो नथी. बाह्यचारित्र
तथा शुभराग होय तेने ज ते पोतानुं स्वरूप माने छे, तेने ज मोक्षनुं साधन माने छे,
पण पोताना साचा स्वरूपने अने मोक्षना साचा कारणने ते जाणतो नथी. अहा,
मोक्षनो मार्ग तो अंतरमां आत्मानी अनुभूतिरूप छे. आवी आत्मअनुभूति थई ते
वचनातीत छे, ते समयसार छे, तेनाथी बीजुं ऊंचुं कांई नथी. अहा, अधिक शुं कहेवुं?
अनुभूति ते वचनमां आवती नथी, माटे वचनविकल्पोथी बस थाओ! ए तो बधा
दुर्विकल्प छे. आत्मानो