: भाद्रपद : २४९७ आत्मधर्म : ११ :
परमार्थ तो स्वानुभवमां ज समाय छे. तेथी आचार्यदेव कहे छे के–
अरे, जिनवचननो विस्तार तो अगाध अपार छे, ते वाणीथी तो केटलुं कहेवाय?
अनुभवमां आवे तेटलुं वचनमां आवे पण नहीं. स्वानुभवगम्य वस्तुनो पार वचनना
विकल्पथी केम आवे? माटे वचनविकल्प छोडीने अमे तो स्वानुभवमां ज रहेवा ईच्छीए
छीए. आत्मानुं शुद्ध–बुद्ध–चैतन्यघन स्वरूप वर्णवीने छेवटे श्रीमद् राजचन्द्र कहे छे के–
निश्चय सर्वे ज्ञानीनो आवी अत्र समाय,
धरी मौनता एम कही, सहज समाधिमांय.
बहु बोलवाथी, बहु विकल्पोथी कांई ईष्टसिद्धि नथी, माटे चूप रहेवुं ज भलुं छे,
एटले अंदर पण विकल्पथी पार थवानो अभ्यास करीने स्वानुभव करवो ते ज तात्पर्य
छे. सम्यग्दर्शन प्रगट करवामां पण प्रथम आत्मानो अनुभव छे; ते अनुभव करे त्यारे ज
सम्यग्दर्शन थाय छे. बाकी वचन वडे के विकल्पो वडे आत्मानो पार पमाय तेवुं नथी.
बहु बोलवाथी शुं ईष्ट छे? माटे चूप रहेवुं ज भलुं छे. जेटलुं प्रयोजन होय
एटला ज उत्तमवचन बोलवा; शास्त्र तरफना अनेक अभ्यासमां पण जे विकल्प छे
तेनाथी कार्यसिद्धि थती नथी. माटे वचननो बकवाद ने विकल्पोनी जाळ छोडीने,
विकल्पथी जुदी एवी ज्ञाचेतनावडे शुद्ध परमात्माना अनुभवनो अभ्यास करवो ते ज
ईष्ट छे, ते ज मोक्षनो पंथ छे, ते ज परमार्थं छे. आत्मानो जेटलो अनुभव छे तेटलो ज
परमार्थ छे, बीजुं कांई परमार्थ नथी एटले के मोक्षनुं कारण नथी.
शुद्धातम–अनुभव क्रिया, शुद्ध ज्ञान–द्रग दौर;
मुक्तिपंथ साधन यहै वागजाल सब और.
शुद्धात्माना अनुभवरूप जे क्रिया छे ते ज शुद्ध ज्ञान–दर्शन अने चारित्र छे, ते
ज मोक्षपंथ छे, ते ज मोक्षनुं साधन छे. ए सिवाय बधी विकल्पजाळ छे. जेणे आवा
आत्मानो अनुभव करतां आवडयुं तेने बधुं आवडी गयुं.
अरे, तिर्यंचादिक जीवोने शास्त्रनुं जाणपणुं न होय छतां अंतरना वेदनमां राग अने
आत्माना चैतन्यस्वादनी भिन्नता ओळखीने, ‘आ मारो आत्मा ज आनंदस्वरूप छे’ एवुं
अंतरमां वेदन कर्युं तेमां बधाय शास्त्रोनो सार आवी गयो, तेमां मोक्षमार्ग आवी गयो. आवो
आत्मा अनुभवमां आव्यो ते पोते आनंदमय जगतचक्षु छे.–आवा आत्माना अनुभवमां ज
मोक्षमार्ग समाय छे. आवा आत्मानो अनुभव अमे करीए छीए, तमे पण करो.