Atmadharma magazine - Ank 335
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 18 of 44

background image
: १६ : आत्मधर्म : भाद्रपद : २४९७
अद्भुत तेनो महिमा छे – आम निजशक्तिना अद्भुत महिमाना चिंतनमां आत्मानो
अद्भुतरस छे. बहारमां कांईक नवी चीज देखे त्यां लोकोने तेमां अद्भुतता लागे छे ने
ते आश्चर्य पामे छे.–बापु! तारा चैतन्यनी अद्भुतताने जाण्या पछी तने बीजा कोईनी
अद्भुतता नहीं लागे. अरे चैतन्यनी अद्भुतता तो देख! एक पर्यायमां राग–द्वेष
वगर अनंत पदार्थोने एक साथे जाणी ल्ये–एवी एनी ताकात छे. त्रणकाळ त्रणलोकने
जाणवा छतां केवळीने क्यांय आश्चर्य थतुं नथी; आश्चर्यकारी एवा चैतन्यना महिमामां
एवा लीन छे के हवे जगत संबंधी कांई आश्चर्य रह्युं नथी. आवा आश्चर्यकारी
चैतन्यना अद्भुतरसने चाख तो खरो! अरे, आत्मानी अनंत शक्तिनुं चिंतन कर..
तेमां पण तने अद्भुतता लागशे. अनंतशक्तिना स्वादथी भरपूर अद्भूत चैतन्यरस
जेणे चाख्यो तेने जगतना कोई रसमां आश्चर्य के अद्भुतता लागती नथी. अहो,
चैतन्यनी अनुभूतिमा जे अद्भुत रस छे तेनुं शुं कहेवुं! ए तो ईन्द्रियातीत छे.
(९) शांतरस–द्रढ वैराग्य परिणाममां एकाग्रता ते शांतरस छे. परभावोथी
विरक्त थईने चैतन्यनी स्वसन्मुख थतां स्वानुभवमां जे रस आवे ते अपूर्व शांतरस
छे. ते शांतरसमां बधा गुणोनो वीतरागी रस समाय छे. आवो शांतरस अनुभवमां
आवे ते ज आ समयसारनुं फळ छे.–
‘वचनामृत वीतरागनां परमशांतरस–मूळ. ’
अहो, आत्मानो शांतरस! जगतना कोई विषयमां एवो शांतरस नथी. जेमां
राग–द्वेषनी आकुळता नथी; परथी अत्यंत परांग्मुख थईने द्रढ वैराग्यपरिणामथी
अंतरमां एकाग्र थतां चैतन्यना अचिंत्य शांतरसनुं वेदन थाय छे.
–आ प्रमाणे संसारना रसथी जुदा एवा अध्यात्म नवरस कह्या. ज्यारे हृदयमां
सम्यग्ज्ञान थाय छे त्यारे आ प्रकारे नवे रसनो विलास तेमां प्रकाशे छे. अरे, अनंत
गुणना रसनो अत्यंत मधुर स्वाद तेमां समाय छे. बधा गुणोनो स्वाद
स्वानुभवरसमां समाय छे. –आ रीते ज्ञानीनुं ज्ञान नवरसथी भरपूर छे, एटले के
रसवाळुं छे–सरस छे.
प्रगटरूप संसारमे नव रस नाटक होइ।
नवरस गर्भित ज्ञानमें विरला जाने कोई।।
(अनुसंधान पृष्ठ ३४ उपर)