: भाद्रपद : २४९७ आत्मधर्म : १७ :
सम्यक्त्वधारक जीवनी दशानो अद्भुत महिमा;
तेने आठ मदना अभावनुं भावभीनुं वर्णन
सम्यग्द्रष्टि जीवनी परिणति कोई अचिंत्य छे;
तेने आठ गुणनुं पालन होय छे; ते आठ अंग संबंधी
कथाओ आप हालमां आत्मधर्ममां वांची ज रह्या छो,
आवता अंके ते कथाओ पूरी थतां, दीवाळीथी ते आठ
अंगनुं भावभीनुं वर्णन पण (गुरुदेवना प्रवचनमांथी)
आपीशुं. ते उपरांत, सम्यग्द्रष्टिने पच्चीस दोष होतां
नथी; तेमांथी आठमद–कूळमद, जातिमद, रूपमद,
विद्यामद, धन अथवा ऋद्धिमद, बळमद, तपमद अने
ऐश्वर्यमद धर्मीने होतां नथी. तेनुं भावभीनुं वर्णन अहीं
आपवामां आवे छे. आ वर्णन छहढाळानी त्रीजी ढाळना
प्रवचनमांथी लीधुं छे.
सम्यग्द्रष्टिने पोताना अचिंत्य चैतन्यवैभव पासे जगतमां बीजा कोईनी महत्ता
भासती नथी, तेथी तेने क्यांय मद होतो नथी; ए रीते तेने आठमदनो अभाव होय
छे, तेनुं अहीं वर्णन करे छे.–
१–२ कूळमद तथा जातिमद : पिताना पक्षने कूळ, अने माताना पक्षने जाति
कहेवाय छे; पण माता–पिता ए तो जड शरीरनो संबंध छे, तेनी मोटाईनां अभिमान
शा? हुं तो शरीरथी जुदो चैतन्यमूर्ति छुं; माता–पिताने कारणे कांई मारी मोटाई नथी.
माता कोई मोटा घरनी होय के पिता कोई मोटा राजा–महाराजा होय तेने कारणे धर्मी
पोतानी मोटाई मानता नथी, एटले तेने जातिमद के कुळमद होतो नथी. अरे, अमारी
जाति तो चैतन्यजाति छे, देहनी जाति अमारी छे ज नहीं, पछी तेनो मद केवो? हुं
ज्ञानस्वरूप छुं; ज्ञानस्वरूप मारा आत्माने कोईए उपजाव्यो नथी, पछी मारे जाति–कूळ
केवा? चैतन्य मारी जाति, अने ज्ञान–दर्शन स्वभाव ज मारुं कूळ छे. आ रीते धर्मीने
पिता के पुत्रादि कोई महान होय तो