Atmadharma magazine - Ank 335
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: भाद्रपद : २४९७ आत्मधर्म : २१ :
मारो धर्म नथी. जेने धर्मनुं भान थयुं तेने कर्मसामग्रीमां अहंपणुं केम रहे? कर्मसामग्री
वडे (एटले के पुण्यनां फळवडे) जेने पोतानी मोटाई भासे छे तेणे कर्मथी भिन्न
पोतानो चैतन्यवैभव दीठो नथी. धर्मी जाणे छे के ए वैभव अमारो नथी, ए तो
उपाधि छे; अमारा आत्मानो वैभव तो केवळज्ञानादि अनंत चतुष्टयथी भरपूर अक्षय–
अखंड–अविनाशी छे. माता–पिता महान होय के बहारमां पुण्यवैभवना ढगला होय
तेमां मने शुं?–ए तो बधी कर्मनी सामग्री, ते अमारी जात नहीं. अमे तो
सिद्धभगवंतोनी जातना, अने तीर्थंकरोना कूळना छीए. तेमना केडायती छीए, तेमना
मार्गे चालनारा छीए. सिद्ध अने तीर्थंकर भगवंतो जेवा ज आत्माना वैभवना अमे
स्वामी छीए. अमारो आत्मा चैतन्यदेव, ते ज अमारी महत्ता छे; आ चैतन्यदेव स्वयं
महिमावंत, जगतमां सौथी महान छे; एना सिवाय जगतना कोई पदार्थ वडे अमने
अमारी महत्ता भासतीनथी. चैतन्यनुं ऐश्वर्य जेणे देख्युं नथी ते कोईने कोई परना
बहाने मीठास ल्ये छे. जेम लींबोळीनो ढगलो भेगो करीने एम माने के मारे केटलो
बधो वैभव!–ए तो बाळक छे, राजा एम न करे. तेम बहारमां पुण्यनां ठाठ ते तो
लींबोळी जेवा कडवा विकारनां फळ छे, बाळकबुद्धि जेवो अज्ञानि तेने पोतानो वैभव
माने छे; पण राजा जेवो सम्यग्द्रिष्ट–जेणे पोताना साचा चैतन्यनिधानने पोतामां
देख्या छे–ते कदी पुण्यफळवडे पोतानी महत्ता समजतो नथी, एने तो ते धूळना ढगला
जेवा पुद्गलपिंड समजे छे.
भरत चक्रवर्तीने छ खंडनो राजवैभव हतो छतां ते जाणता हता के अमारा
चैतन्यना अखंड वैभव सिवाय बीजुं कांई एक रजकण मात्र पण अमारुं नथी, तेना
स्वामी अमे नथी. अमे छ खंडना स्वामी नथी पण अखंड आत्मानी अनुभूतिना
स्वामी छीए. एम चैतन्यनी अनुभूतिमां ते बहारना वैभवने अडवा पण देता न
हता. अतीन्द्रिय ज्ञानवडे आत्मसंपदाना अचिंत्य वैभवनुं स्वसंवेदन जेणे कर्युं तेने
जडनां के विकारनां फळनां अभिमान क्यांथी रहे? आप धर्मीने धनमद थतो नथी,
तेमज बीजा कोई धर्मात्मा–गुणवान जीव अशुभकर्मना उदयवश दरिद्र होय तो तेना
प्रत्ये तेने अवज्ञा के तीरस्कारबुद्धि थती नथी. अरे, आत्माना चैतन्यनिधान पासे
जगतना वैभवने तूच्छ–सडेला तरणां जेवा समजीने, क्षणमां तेने छोडीने, चैतन्यना
केवळज्ञान–निधानने साधवा माटे अनेक मुमुक्षु जीवो मुनि थईने वनमां चाल्या गया.
अज्ञानीओ ए धन वगेरे जडसामग्री पासे पोताना सुखनी भीख मांगे छे, ज्ञानी तो
तेने छोडीने पोताना चैतन्यसुखने साधे छे. अज्ञानीने पुण्यकर्मना उदयथी कंईक धन
वगेरे सामग्री मळे त्यां तो अभिमान थई जाय के अमे केवा मोटा थई गया?