झांवा नांखे छे, पण धर्मी जाणे छे के ए कांई मारा चैतन्यनुं फळ नथी, विकारनुं फळ छे
तेनी होंश शी? चैतन्यना पद पासे चक्रवर्तीपद पण तद्न तूच्छ छे. आवुं चैतन्यपद
जेणे पोतामां प्राप्त कर्युं (जाण्युं ने अनुभव्युं) ते बीजा क्या पदनां अभिमान करे?
अहा, त्रणलोकमां सौथी ऊंचुं एवुं अमारुं चैतन्यपद अमे अमारा अंतरमां देख्युं छे,
अंतरमां आनंदनी अपूर्व वीणा वागी छे, अतीन्द्रिय सुखना तरंगथी चैतन्यदरियो
ऊछळ्यो छे; आवो आनंदस्वरूप हुं पोते छुं. आनंदथी ऊंचुं जगतमां बीजुं शुं छे?
आवी आत्मअनुभूतिने लीधे धर्मात्माने जगतनां ऐश्चर्यनो मोह ऊडी गयो छे, तेथी
तेने क्यांय ऐश्वर्यनो मद थतो नथी. मोटो अधिकार होय, लाखो–करोडो लोको पूजता
होय, आखा देशमां हुकम चालतो होय,–पण तेने लीधे आत्मानी जराय मोटाई धर्मी
मानता नथी. मारी मोटाई तो मारा स्वभावथी ज छे; बीजा मने मोटाई शुं आपशे?
बीजा पासेथी मोटाई लेवी पडे एवो पराधीन हुं नथी. आ रीते धर्मीने मोटाईनो मद
होतो नथी. तेमज बीजा जीवो अशुभकर्मना उदयथी दरीद्र होय तेनी अवज्ञा पण करता
नथी. बहारनुं ऐश्वर्य होवुं के न होवुं ते तो कर्मकृत छे, एनुं स्वामीत्व धर्मीने नथी.
मिथ्याद्रष्टि मोटो राजा होय ने सम्यग्द्रष्टि तेनी नोकरी करतो होय–ए तो बधा शुभाशुभ
कर्मना चाळां छे, तेथी धर्मी पोताने दीन नथी मानतो. पोताना अक्षय ज्ञानादि अनंत
ऐश्वर्यने ते पोतामां देखे छे. आ रीते धर्मीने मद के दीनतानो अभाव छे.
नथी. माता–पिता–शरीर–रूप–धन वगेरे जे चीज मारी छे ज नहि तेना वडे मारी
अधिकता केम होय? मारी अधिकता तो मारा सम्यकत्वादि स्वभाव वडे छे. सुंदर शरीर
ने बहारनी मोटाई ए तो अनंतवार मळ्युं, तेमां जेने पोतानी शोभा लागे छे तेने
चैतन्यपदथी शोभता एवा पोताना आत्मानुं भान नथी. देह–जाति–रूप–माता–पिता–
धन–वैभव–मोटी पदवी ए तो बधा परद्रव्य छे, ते बधाथी पोताना आत्माने सर्वथा
जुदो अनुभव्यो पछी धर्मीने ते पदार्थो वडे पोतानी मोटाई केम भासे? माटे तेने आठ
मद होता नथी. मोटाईनो कोई विकल्प आवी जाय तो तेने पण मलिनता जाणीने ते
भाव छोडवो ने दोषरहित शुद्ध सम्यकत्वनी आराधना करवी–एम उपदेश छे.