: भाद्रपद : २४९७ आत्मधर्म : २५ :
आ रीते आठ शंकादिक दोष तथा आठमद सम्यग्द्रष्टिने होतां नथी; ते उपरांत छ
अनायतन अने त्रण मूढतानुं सेवन पण तेने होतुं नथी. अरिहंत परमात्माए जीवनुं
जे स्वरूप बताव्युं तथा सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप जे वीतरागमार्ग बताव्यो, तेनाथी
विरूद्ध कहेनारा ने विरुद्ध माननारा एवा कुदेव–कुगुरु–कुधर्मने धर्मीजीव सर्वप्रकारे छोडे
छे, कोई प्रकारे तेनी अनुमोदना करता नथी, तेमज एवा कुदेव–कुगुरु–कुधर्मने सेवनारा
मिथ्याद्रष्टिजीवोनो संग पण ते छोडे छे, धर्मबुद्धिथी एवा जीवनो संग ते करता नथी.
वळी देवसंबंधी अनेक मूढता, गुरुसंबंधी अनेक मूढता तथा धर्मसंबंधी अनेकमूढता
लोकोमां चाले छे, पण धर्मी तेने स्वप्नेय माने नहीं.
जे धर्मनुं स्थान नथी, जेनी पासे धर्मनो साचो उपदेश नथी, सम्यग्ज्ञाननुं
स्वरूप जेमां नथी, अनेक प्रकारे जे विषय–कषायना राग–द्वेषना पोषक छे, जेमां हिंसा–
अहिंसानो पण विवेक नथी एवा कुदेव–कुगुरु–कुधर्म ते धर्मनां अनायतन छे, तेना
सेवनथी आत्मानुं जरापण हित थतुं नथी, तेना सेवनथी तो सम्यकत्वादिनो घात थाय
छे ते आत्मानुं अत्यंत बूरुं थाय छे. एवा कुदेवादिनुं सेवन सम्यग्द्रष्टिने तो होय ज
नहि, पण जैन नाम धरावनार जिज्ञासुने पण एवा कुदेवादिनुं सेवन होय नहीं.
वीतराग जैनमार्गना देव–गुरु–धर्म, अने तेने सेवनारा साधर्मी–धर्मात्मा सिवाय
बीजानुं सेवन अहितनुं कारण जाणीने अत्यंत छोडवा जेवुं छे.
सम्यग्द्रष्टि, महान अलौकिक आत्माना अंर्तस्वभावनुं जेने भान थयुं छे, तेने
निश्चय सम्यक्त्वनी साथे व्यवहार पण पच्चीस दोष रहित होय छे. आजीविका छूटी
जाय, धन लूंटाई जाय, देश छोडवो पडे के प्राण जाय तो पण सम्यग्द्रष्टि जीव कोई प्रकारे
भयथी–आशाथी–स्नेहथी कुधर्मनुं के कुदेवादिनुं आराधन करे नहीं. वीतरागी देव–गुरु–
धर्मनो भक्त हिंसकदेव–देवलांने नमे नहीं. अहा, अरिहंतदेवनो उपासक ए तो
चैतन्यना वीतरागमार्गे चालनारो, ते बीजा कुमार्गने केम आदरे? ते कुमार्गनी के तेना
सेवकोनी प्रशंसा करे नहि, अनुमोदना करे नहि. अमुक कुधर्म खूब फेलायेलो छे माटे
सारो छे, तेना भक्तो सारा छे, तेना शास्त्रो–मंदिरो सारा छे–एवी प्रशंसा धर्मी न करे.
कुधर्मना सेवक कोई मोटा मंदिर वगेरे बंधावे, करोडो–अबजो रूपिया खर्चीने यज्ञादिक
मोटा उत्सव करे त्यां धर्मी तेनी प्रशंसा पण न करे के तमे बहु सारूं कर्युं. अरे,
वीतरागमार्गथी विरुद्ध एवा कुमार्ग, जे जगतना जीवोनुं अहित करनार, तेना कार्यनी
प्रशंसा शी? जेमां मिथ्यात्वनुं पोषण ते क्रियाने सारी कोण