Atmadharma magazine - Ank 335
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : आत्मधर्म : भाद्रपद : २४९७
कहे? आ रीते धर्मी जीव कुदेव–कुगुरु–कुधर्मने पोते सेवे नहि, ने बीजा सेवे तेनी
प्रशंसादिक न करे; पण बने तो तेने उपदेश आपीने साचो मार्ग बतावे ने कुमार्गथी
छोडावे. धर्मीगृहस्थ राजाने के माता–पिता वगेरे वडीलने नमे ते तो लोकव्यवहार छे,
तेनी साथे कांई धर्मनो संबंध नथी; पण धर्मना व्यवहारमां ते कुदेव–कुगुरुने कदी नमे
नहीं. आ तो जेने सम्यग्दर्शनरूपी महारत्न लेवुं छे, धर्मनो साचो माल लेवो छे तेने
माटे वात छे; तथा जेणे सम्यग्दर्शनरूपी रत्न प्राप्त कर्युं छे तेने ते साचववानी वात छे.
सम्यक्त्वमां जराय अतिचार न लागे, ने शुद्धता थाय–ते माटे पचीस दोषरहित अने
आठ गुणसहित सम्यक्त्वनी आराधना करवी; तेना वडे जीवनुं परम हित थाय छे.
बापु! आ तो तारा पोताना हितने माटे साचा–खोटानो विवेक करवानी वात छे.
साचुं शुं ने खोटुं शुं एनी जेने खबर ज नथी ते शुं लेशे? ने शुं छोडशे? पोतानुं हित ते
कई रीते करशे? परीक्षा वडे साचा–खोटाने ओळखीने निर्भयपणे सत्यनो स्वीकार करवो
जोईए, ने असत्यनुं सेवन छोडवुं जोईए. जगत साथे मेळ राखवा के जगतने सारूं
लगाडवा कांई धर्मने न छोडाय. पोतानी श्रद्धा साची करवा माटेनी आ वात छे.
वीतरागी देव–गुरु–धर्मनो आदर ने तेनाथी विरुद्ध कुदेव–कुगुरु–कुधर्मनो त्याग,
–आटलुं तो सम्यक्त्वनी पात्रतारूप प्राथमिक भूमिकामां पण होवुं जोईए. ‘त्याग–
वैराग्य न चित्तमां थाय न तेने ज्ञान’ एम कह्युं तेमां कुदेवादिनो त्याग तो पहेलां ज
समजी लेवो. बीजा तो अनेक प्रकारनां त्याग कर्या करे पण कुदेव–कुगुरुना सेवननो
त्याग न करे तो तेनुं जराय हित न थाय. अने रागने ज्यां धर्म मान्यो त्यां वैराग्य
क्यां रह्यो? अरे, देहथी भिन्न मारुं अखंड चैतन्यतत्त्व शुं छे अने तेनो अनुभव केवो
छे? तेनुं साचुं स्वरूप बतावनारा वीतराग सर्वज्ञदेव, रत्नत्रय गुरु अने राग वगरनो
धर्म तथा शास्त्रो जेने जे ओळखे तेने ते ओळखे ते जीव तेनाथी विरुद्ध बीजा कोईने
माने नहि, नमे नहीं, प्रशंसे नहीं.
एक तरफथी कुन्दकुन्दाचार्य जेवा वीतरागी संतनो पोते भक्त कहेवडावे अने
बीजी तरफ एमनाथी विरुद्ध कहेनारानो पण आदर अने श्रद्धा करे, तो एने सत्यनो
विवेक क्यां रह्यो? बापु! वीतरागमार्गना ने वीतरागी संतोना विरोधी एवा कुगुरुना
सेवनमां तो मिथ्यात्वनी पुष्टि तथा तीव्रकषायने लीधे आत्मानुं घणुं बूरुं थाय छे, तेथी
तेनो निषेध करीए छीए; तेमां कांई कोई व्यक्ति प्रत्ये