: भाद्रपद : २४९७ आत्मधर्म : २७ :
द्वेषबुद्धि नथी पण जीवोनां हितनी ज बुद्धि छे; तथा पोतानी श्रद्धा चोख्खी रहे ने तेमां
दोष न लागे ते माटे आ वात छे. सम्यमार्गथी विरुद्धनो विकल्प धर्मी कदी आववा न
द्ये. मिथ्यात्व–संबंधी दोषोथी बचवा अने सम्यक्त्वनी शुद्धि जाळववा निःशंकतादि
आठअंग आदरणीय छे.
आ रीते सम्यक्त्व संबंधी गुण–दोषने ओळखीने पोताना हितने माटे
निःशंकतादि आठ गुणसहित, थता शंकादिक पच्चीस दोषरहित, शुद्ध सम्यक्त्वने धारण
करो–एम उपदेश छे.
* अंर्ततत्त्वनो अनुभव *
* वन–जंगलमां वीतरागी संतो क्षणे ने पळे पोताना अंर्ततत्त्वने निर्विकल्प
थईने अनुभवे छे. अहा! धन्य छे ते अनुभवनी पळ! धर्मी–गृहस्थ पण
घरमां क्यारेक आवो निर्विकल्प अनुभव करे छे.
* अहा, आवा पोताना अंर्ततत्त्वनो निर्णय करे तो अंतरमां ऊतरीने अनुभव
करवानो अवसर आवे. स्वद्रव्य केवुं छे तेने ओळखीने ते उपादेय करवा जेवुं
छे. उपादेय कई रीते करवुं?–तेनी सन्मुख थईने अनुभव कर्यो एटले ते उपादेय
थयुं; अने तेनाथी विरुद्ध बधा विभावो हेय थई गया, तेमनुं लक्ष छूटी गयुं.
* जे एक सहज ज्ञायकभाव छे ते परमतत्त्व छे. ने बीजा बधा भेद–भंगरूप
व्यवहारभावो ते अपरमभाव छे. परमभावरूप जे शुद्धतत्त्व तेना अनुभवथी
प्रचुर आनंदसहित आत्मानो निजवैभव प्रगटे छे; ते मोक्षमार्ग छे. माटे
परमभाव ज अनुभव करवायोग्य छे.
* मोक्षमार्गना शुद्धभावमां व्यवहारना कोई भेद–भंगनुं आलंबन नथी, एक
सहज परमतत्त्वनुं ज आलंबन छे; तेना अनुभवथी ज सम्यग्दर्शन थाय छे.
तेना अनुभवथी ज चारित्रदशा अने केवळज्ञान थाय छे.
* –आवा अभेद परमतत्त्वना अनुभव पहेलां भेदना विकल्पो आवे छे; शुद्ध द्रव्य–
गुण–पर्याय वगेरेना विचारमां साथे विकल्प आवे छे, ते विकल्पोनो खेद छे, तेनी
होंश नथी, तेना प्रत्ये उत्सुकता नथी, शुद्ध–स्वभाव तरफनी ज होंशने उत्सुकता छे.
अरे, सीधेसीधा परमस्वभावमां ज पहोंची जवानी भावना छे, तेना ज
अनुभवनुं लक्ष छे, पण वच्चे भेद–विकल्पो आवी जाय छे तेनी भावना नथी.