: २८ : आत्मधर्म : भाद्रपद : २४९७
सम्यग्दर्शनना आठ अंगनी कथा
समकितसहित आचार ही संसारमें ईक सार है,
जिनने किया आचरण उनको नमन सोसो वार है;
उनके गुणोंके कथनसे गुणग्रहण करना चाहिए,
अरू पापियोंका हाल सुनके पाप तजना चाहिए.
[प्रथम निःशंकअंगमां प्रसिद्ध अंजनचोरनी कथा, बीजी निःकांक्षअंगमां प्रसिद्ध
सती अनंतमतिनी कथा, त्रीजी निर्विचिकित्सा–अंगमां प्रसिद्ध उदायन राजानी
कथा, चोथी अमूढ द्रष्टि–अंगमां प्रसिद्ध रेवतीराणीनी कथा, पांचमी उपगूहन
अंगमां प्रसिद्ध जिनभक्त शेठनी कथा, तथा छठ्ठी स्थितिकरण अंगमां
प्रसिद्ध वारिषेणमुनिनी कथा आपे वांची;
सातमी कथा आप अहीं वांचशो.
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(७) वात्सल्य–अंगमां प्रसिद्ध विष्णुमुनिनी कथा
लाखो वर्ष पहेलांनी, मुनिसुव्रत भगवानना तीर्थनी आ वात छे. उज्जैन
नगरीमां त्यारे श्रीवर्मा राजा राज्य करता हता, तेने बलि वगेरे चार मंत्री हता, तेओ
नास्तिक हता, तेमने धर्मनी श्रद्धा न हती.
एकवार ते उज्जैन नगरीमां सातसो मुनिओना संघ सहित अकंपन आचार्य
पधार्या. लाखो नगरजनो आनंदथी मुनिवरोनां दर्शन करवा गया; राजाने पण तेमनां
दर्शन करवानी ईच्छा थई, अने मंत्रीओने पण साथे आववा कह्युं. जोके ते बलि वगेरे
मिथ्याद्रष्टि मंत्रीओने तो जैन मुनिओ उपर श्रद्धा न हती, पण राजानी शरमथी तेओ
पण साथे चाल्या.
राजाए मुनिओने वंदन कर्युं; पण ज्ञान–ध्यानमां मस्त मुनिवरो तो मौन ज