Atmadharma magazine - Ank 335
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: भाद्रपद : २४९७ आत्मधर्म : ५ :
२४ अहो, आवो अनुभव करवो तेमां अतीन्द्रिय आनंदनो परम स्वाद छे.
२५ लोकोमां बदामनी पूरी ऊंची स्वादिष्ट कहेवाय छे, पण ते स्वाद तो जड छे; अहीं
संतो आनंदना स्वादथी भरेलो वीतरागी बदामपाक वीरसे छे.
२६ आजे बीजना मंगल दिवसे आ बदामनी पूरी पीरसाय छे. अंतरमां परमात्माना
अनुभवरूप आवा बदामपाकने सम्यग्द्रष्टि ज पचावे छे.
२७ ज्ञानी पोताने आवो अनुभवे छे के–
केवलदरश–केवलवीरज–कैवल्यज्ञान स्वभावी छे,
वळी सौख्यमय छे जेह ते हुं एम ज्ञानी चिंतवे.
(नियमसार : ९६)
२८ आत्मा केवळज्ञानादि सहज चतुष्टयस्वरूप छे. केवळज्ञानादि अनंत चतुष्टय छे ते
प्रगट कार्य छे; अने तेना आधाररूप सहज ज्ञान–दर्शनादि चतुष्टय त्रिकाळ छे.–
आवा चतुष्टय स्वरूपे आत्माने जाणीने धर्मी तेने ज भावे छे.
२९ –कई रीते भावे छे?
समस्त बाह्यप्रपंचनी वासनाथी विमुक्त थईने, अने पोताना स्वरूपमां
अत्यंतपणे अंतर्मुख थईने, पोताना आवा आत्माने ते ध्यावे छे. मुमुक्षु जीवे
एनी ज भावना करवी–एम उपदेश छे.
३० ‘समस्त बाह्यप्रपंचनी वासनाथी रहित, कह्युं–तेमां अशुभ के शुभ कोई पण
रागनी रचना ते बधोय बाह्यप्रपंच छे; बाह्यवलणथी ज रागनी उत्पति थाय छे,
तेथी ते समस्त बाह्यभावोथी अत्यंत भिन्न थईने, निर्विकल्प चैतन्यपरिणति
द्वारा धर्मी अंतरमां पोताना परमात्मतत्त्वने भावे छे.
३१ अहो, आत्मतत्त्वनी आ कोई अलौकिक वात छे, तेने जाणीने अंतर्मुखपणे तेनी
ज भावना करवा जेवी छे.
३२ राग छे ने?–तो धर्मी कहे छे के भले हो; पण ते राग कांई हुं नथी, रागपणे हुं
मारा स्वभावने नथी अनुभवतो, पण परिणतिने रागथी भिन्न करीने, ते
परिणति वडे केवळज्ञानस्वरूप आत्माने अनुभवुं छुं,–ते ज हुं छुं.