Atmadharma magazine - Ank 336
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

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: ८ : आत्मधर्म : आसो : २४९७
चैतन्यनी स्वानुभूतिमां ज मारी शोभा छे
(भादरवा सुद पूर्णिमां.... २४९७ नियमसार श्लोक: १७३ थी १७९)
जेम सुंदर स्त्रीओना कटाक्षबाण वडे पण मुनिओनुं हृदय
भेदातुं नथी, तेम संकल्प–विकल्पो वडे चैतन्यतत्त्व भेदातुं नथी,
धर्मी पोताना चैतन्यतत्त्वने समस्त – संकल्प – विकल्पोथी तद्न
चूकीने तुं परभावना कोलाहलमां क्यां अटक्यो?
जेम मोटा माणसनी हाजरीमां बाळक तोफान करे तो
माता तेने वढे के – अरे डाया! आ तने शुं सूझयुं? आवा मोटा
माणस सामे बेठा छे ने तुं आवा तोफान करे छे, ए ते कांई तने
शोभे छे? तेम रागथी जे लाभ मनावे छे एवा जीवने
जिनवाणीमाता ठपको आपे छे के – अरे जीव! मोटा परमात्मा
अंदर साक्षात् तारी पासे बिराजे छे ने तेनी हाजरीमां तुं रागथी
लाभ मानीने परभाव. तोफान करे छे – ए ते कांई तने शोभे
छे? ना रे ना; तारी शोभा तो रागथी पार चैतन्यनी
स्वानुभूतिवडे ज छे.
मुमुक्षुजीव पोताना निर्विकल्प शुद्धतत्त्वने बराबर जाणे छे; त्रणलोकने
जाणवानो जेनो स्वभाव छे, अने क्यांय एक विकल्प पण करवानो जेनो स्वभाव नथी
एवुं शुद्ध – निर्विकल्प सत्त्व हुं ज छुं – एम स्वानुभवथी अत्यंत स्पष्ट मुमुक्षुजीव जाणे
छे. ए रीते स्वतत्त्वने जाणीने, शुद्धोपयोगवडे तेमां एकाग्रतारूप शुद्धशीलना
आचरणवडे ते मुमुक्षुजीव सिद्धिने पामे छे.
जुओ, स्वतत्त्व केवुं छे? ने ते केम जणाय, एटले के ते अनुभवमां केम आवे?
तेनी आ वात छे. पोतानी ज्ञानपर्यायवडे पोतानो आत्मा जणाय छे. ज्यारे
ज्ञानपर्यायने स्वभावसन्मुख एकाग्र करतां ज्ञानमय आखी चीज जाणवामां आवी,
त्यारे तेणे आत्माने जाण्यो. आवा आत्माने जाणीने तेमां एकाग्र थतां शुद्ध शीलनुं