Atmadharma magazine - Ank 336
(Year 28 - Vir Nirvana Samvat 2497, A.D. 1971)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 11 of 44

background image
: आसो : २४९७ आत्मधर्म : ९ :
आचरण थाय छे. परथी भिन्न, पोताना शुद्ध – द्रव्य – गुण – पर्यायरूप एक आखी
चैतन्यवस्तु छे; तेमां द्रव्य–गुणने भूलीने जो एकली पर्याय जेटलो ज पोताने अनुभवे
तो ते जीवने (प्रवचनसारनी गा. ९३ मां) पर्यायमूढ–मिथ्याद्रष्टि कह्या छे. शुद्ध
पर्यायना भेद पाडीने तेना विकल्पमां रोकाय तोपण तेने विकल्प साथे एकता छे, तेने
शुद्धपर्याय थती नथी. शुद्धपर्याय तो त्यारे ज थाय के ज्यारे द्रव्य–गुण–पर्यायना भेदनुं पण
अवलंबन छोडीने एक अभेद शुद्धआत्मानुं अवलंबन ल्ये, ने ते अभेदनो अनुभव करे.
मुनिओ अने सम्यग्द्रष्टि धर्मात्माओ आनंदसहित पोताना अंतरमां आवा
निर्बाध तत्त्वनो अनुभव करे छे. आ निर्बाध चैतन्यतत्त्व कोईथी भेदातुं नथी. जेम
सुंदर स्त्रीओना कटाक्षबाणवडे पण मुनिओनुं हृदय भेदातुं नथी, तेम संकल्प–
विकल्पोवडे चैतन्यतत्त्व भेदातुं नथी, धर्मी पोताना चैतन्यतत्त्वने समस्त संकल्प–
विकल्पोथी तद्न जुदुं ने जुदुं राखे छे. अरे जीव! आवा शांत–सुंदर तारा तत्त्वने चूकीने
तुं परभावना कोलाहलमां क्यां अटक््यो?
जेम मोटा माणसनी हाजरीमां बाळक तोफान करे तो माता तेने वढे के–अरे डाया!
आ तने शुं सूझ्युं? आवा मोटा माणस सामे बेठा छे ने तुं आवा तोफान करे छे, ए ते
कांई तने शोभे छे? तेम रागथी जे लाभ मनावे छे एवा जीवने जिनवाणीमाता ठपको
आपे छे के – अरे जीव! मोटा परमात्मा अंदर साक्षात् तारी पासे बिराजे छे ने तेनी
हाजरीमां तुं रागथी लाभ मानीने परभावनां तोफान करे छे – ए ते कांई तने शोभे छे?
ना रे ना, तारी शोभा तो रागथी पार चैतन्यनी स्वानुभूतिवडे ज छे. अरे, ‘तुं राग कर,
तने रागथी लाभ थशे’ – एम रागनो उपदेश ते कांई मुनिने के धर्मीने शोभे? ना; अहो,
वीतरागताना साधको तो वीतरागताथी ज लाभ मनावे, वीतरागतानो ज उपदेश करे, ने
तेनो ज आदर करे. वीतरागभाव वडे ज एमनी शोभा छे.
वीतरागी गुरुओ तो वीतरागमार्गनो ज उपदेश आपे छे. जेओ रागनी
पुष्टिनो उपदेश आपे, तेने वीतरागमार्गी कोण कहे? जेओ मिथ्यामार्गनो उपदेश आपे,
जेओ ‘तुं आ नवुं पाप कर’ एम पापनो उपदेश आपे, ते तो वीतरागमार्गथी विरुद्ध
छे. धर्मी तो कहे छे के अमारूंं तत्त्व रागथी अत्यंत भिन्नपणे जयवंत छे. अहो, आ
तत्त्वना महिमानी शी वात!
वाह जुओ तो खरा! मुनिओ तो सिद्ध साथे वातुं करे छे. प्रभो! तारा जेवो
मारो स्वभाव में मारामां अनुभव्यो–एटले हुं तारी समीपमां