अनुभवे छे. आहा, मारो आत्मा ज कल्याणनी मूर्ति छे. तेने नजरमां लीधो छे तेथी
मारूं कल्याण ज छे; प्रत्यक्षस्वभावी आत्मा पर्यायमां पण स्वानुभवप्रत्यक्ष थयो
छे, आम स्वसंवेदनप्रत्यक्षना बळे धर्मी पोताना प्रत्यक्षस्वभावी आत्माने निःशंक
जाणे छे. ते जाणनारा ज्ञान तो मति–श्रुत छे, छतां ते ज्ञानमां ईन्द्रियनुं–मननुं के
पर्याय पण तेवी अतीन्द्रिय थई छे. आवुं आत्मानुं स्वसंवेदन थतां धर्मी जाणे छे के
आनंदनुं ने ज्ञाननुं धाम हुं ज छुं. ज्ञाननुं मंदिर, आनंदनुं मंदिर हुं ज छुं, माराथी
धर्मात्माने पोतानो आत्मा सुलभ ज छे, दूर्लभ नथी, दूर नथी.
परभावोना प्रपंचथी ते दूर छे, पण मारा स्वभावमां ते मने निरंतर सुलभ छे. मारुं
शुद्धतत्त्व मारामां सदा प्राप्त ज छे, सदाय मने सुलभ ज छे. मारामां सदाय हुं प्राप्त ज
सुलभ छे–आवुं जे पोतानुं शुद्धतत्त्व छे ते नमवायोग्य छे, तेमां अंतर्मुख थईने एकाग्र
थवा जेवुं छे. अमे तेने ज नमीए छीए.
कळाए खील्यो छे, तेनी साथे परम शांतरस उल्लसे छे; तेवो ज मारा आत्मानो
विकल्प करवानो स्वभाव नथी; एकलो अनाकूळ शांतरस ज तारामां भर्यो छे.–आवा
स्वरूपमां नजर करतां शांतरसनो दरियो पोतामां उल्लसतो देखाय छे... अनंती शांति